Sunday 15 May 2016

पहाड़ का मालवाहक जहाज ...


पहाड़ का मालवाहक जहाज ...

                                        अथ श्री खच्चर उवाच ! .. एक सहज संवाद
        खाड़ी से मौण गाँव की ओर 13 किमी. चलने के बाद चढ़ाई लिए, कच्ची पक्की सड़क से गुजरना हुआ। सुहावने मौसम में कुछ देर सुस्ताने की गरज से बाइक रोकी तो सड़क किनारे घास चरते इस सजे-धजे, ह्रष्ट-पुष्ट गबरु जवान, खच्चर (Mule) पर नजर पड़ी. मालिक अपने मोबाइल पर मस्त था तो सीधे ही खच्चर (Mule) महाशय से मुखातिब हुआ !
       बातचीत शुरू हुई, काम धंधे के बारे में पूछा, जनाब के चेहरे पर संतोष मिश्रित चिंता उभर आई ! बोले " सड़क निर्माण और NGT के आदेशों से काम कुछ कम है लेकिन फिर भी गुज़र-बसर हो ही रही है , दिन भर मेहनत करके 600 रुपये तक कमा लेता हूँ " . अंतरंगता बढ़ने पर खुलकर बात शुरू हुई. महाशय दिल का दर्द बयां करते हुए कहने लगे .. " पहाड़ों पर जहाँ कोई अन्य यातायात का साधन नहीं पहुंच पाता वहाँ हम विपरीत मौसम में भी पहाड़ी दुर्गम ऊबड़-खाबड़, संकरे रास्तों पर अपनी जान हथेली पर रखकर चलते हैं और बिना थके सवारी और सामान दोनों को सुरक्षित पहुंचा देते हैं ! लेकिन फिर भी हमें घोड़ों की तरह सम्मान नहीं मिलता ! हमें अलग ही नाम दे दिया है .. खच्चर !! बात यहीं तक सीमित होती तो चल जाता ! लेकिन जब किसी मंदबुद्धि को व्यंग्य में “ खच्चर “ कहा जाता है तो हमारी आत्मा बहुत दुखती है. गधों से तो हमें ज्यादा अकल होती है कि नहीं !!" खच्चर महाशय शिकायती लहजे में आँखें तरेरते हुए बोले ! मैंने हमदर्दी में सिर हिलाया और चुपचाप सुनने में ही अपनी भलाई समझी ! आगे बोले .. " मगर जब हाड–तोड़ मेहनती इंसान को “ खच्चर की तरह काम करने वाला “ की उपमा दी जाती है तो हमें खुद के खच्चर होने पर गर्व भी होता है।"
        लगे हाथों अपनी " वैल्यू " जताते हुए यह भी बता दिया कि मालिक मुझे 90,000 रुपये में खरीदकर लाया है।
      अपनी ताकत के बारे में जनाब ने बताया कि उनका वजन 450 किग्रा तक होता है और अपने वजन का 30% तक भार आसानी से ले जा सकते हैं। साथ ही अपनी सुरक्षा में दुश्मन को आगे -पीछे -दाएँ -बाएं, हर दिशा में ताबड़तोड़ लतिया कर धूल भी चटा सकते हैं।
      आगे बात चली तो जनाब घोड़े से अपनी तुलना करते हुए कुछ तन कर कहने लगे “ बेचारा घोडा तो 25-30 साल तक ही तो जीवित रह पाता है ! हम तो जीवन की सिल्वर जुबली भी मना लेते हैं ! “
आगे कहते हैं " रही बात अपनी संख्या बढाने की !!.. तो हम इसमें दिलचस्पी नहीं रखते ! पिछले 500 सालों में मात्र 60 ऐसे मौके आये जब मादा खच्चर ने बच्चे को जन्म दिया हो “
      देश की सीमाओं की सुरक्षा की बात चली तो खच्चर महाशय गर्व से कहने लगे. “ हम देश की सीमाओं की रक्षा किसी सिपाही की ही तरह करते हैं, हाँ इतना जरुर है कि सेना में हमारे खान-पान की और देखभाल की व्यवस्था बहुत अच्छी होती है वहां हमें 26 किमी. से ज्यादा लगातार नही चलना पड़ता और हमारी पीठ पर 72 किग्रा, वजन से ज्यादा बोझ नहीं लादा जाता है.”
      खैर, अब हमने जनाब से बिरादरी की उपलब्धियों पर सवाल दागा. चरना छोड़ मुझसे सीधे मुखातिब होकर बोले “ हमारे बिरादर द्वारा दुनिया के किसी देश की सेना में सबसे लम्बी सेवा करने का विश्व रिकार्ड, हमारे पकिस्तानी बिरादर के नाम था, लेकिन हमारे हिन्दुस्तान के “ पैडुगी “ नाम के बिरादर ने सेना में 28 साल से अधिक सेवा करके उस रिकार्ड को ध्वस्त कर दिया औए गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करवाकर हमारा और हिन्दुस्तान का गौरव बढाया “
     सियासत पर बात चलने पर जनाब मायूस होकर बोले, " हालिया "शक्तिमान" से किए गए अमानवीय व्यवहार के बाद हमारी बिरादरी की घोड़ों जैसा सम्मान पाने की ख्वाहिश भी अब कुंद पड़ गई है ! हम ऐसे ही भले हैं !"
     मुझे आगे जाना था तो मैंने विदा लेने के अंदाज में कहा, " खच्चर भाई ! अब चलता हूँ इस तरफ फिर कभी आना हुआ तो अवश्य मिलेंगे. “ ... “खच्चर “ संबोधन सुनते ही जनाब भड़कने ही वाले थे कि मैनें भूल सुधार करते हुए तुरंत महाशय की शान में इजाफा करते हुए कहा. ओह ! सॅारी !! आप खच्चर नहीं सही मायने में “ पहाड़ के जहाज “ हैं, फिर मिलेंगे तो विस्तार से बात करेंगे अभी जल्दी में हूँ।
       अब " पहाड़ के जहाज " ने खुश होकर गर्दन में लटकी घंटियाँ बजाकर मुझे अलविदा कहा और मैं अपने गंतव्य की ओर चल दिया .


बिन पानी जग सून !



बिन पानी जग सून !

       उत्तराखंड में आजकल जहाँ एक ओर स्थानीय निवासी पेय जल समस्या से जूझ रहे हैं वहीँ ऋषिकेश-चंबा मार्ग पर मर्च्वाड़ी गाँव के पास सड़क किनारे जीविकोपार्जन के लिए झोपड़ी में चाय-पान की दुकान चलाने वाले श्री भगवती प्रसाद भट्ट जी ने बारहों मास के लिए पानी का, सीमित ही सही मगर समाधान निकाल लिया है.
        सफ़र में विश्राम का मन हुआ ! ज्यों ही इस झोपडी के पास पानी देखकर बाइक रोकी, भट्ट जी दुकान से बाहर आकर हमसे मुखातिब हुए. हालांकि जल संस्थान ने पाइप लाइन बिछायी हुई हैं लेकिन भीषण गर्मी में अधिकतर चूक गयी हैं. आस-पास कहीं पानी की व्यवस्था न थी तो सड़क किनारे पेड़ पर लटकते प्लास्टिक पाइप से बहते स्वच्छ शीतल जल को देखकर आश्चर्य हुआ !
       चाय के साथ इस पेय जल के मूल श्रोत के बारे में बात चली तो भट्ट जी ने बतया कि इस जगह से डेढ़ किमी. ऊपर पहाड़ी पर उस स्थान से जहाँ जल संस्थान द्वारा इस बहते पानी का कोई उपयोग नहीं, हार्ड प्लास्टिक पाइप द्वारा पानी यहाँ तक ला पाए है अब यहाँ पर गर्मियों में जब आसपास जल संस्थान द्वारा बिछाई गयी पाइप लाइनों में पानी आना बंद हो जाता है तो आस पास के ग्रामीण इसी जगह से पानी भरकर ले जाते हैं, गुमन्तु गुर्जर मवेशियों के साथ इस जल श्रोत के पास ही डेरा डालते हैं, पर्यटक सुस्ताने के लिए अपनी गाडी रोककर शीतल व शुद्ध जल पान का आनंद लेते हैं, चालक अपनी गाडी भी धोते हैं, स्वयं भोजन बनाकर खाने वाले यात्री अपना भोजन बनाने के लिए इसी स्थान को चुनते हैं.
      पहाड़ों पर गाँव तक पेय जल आपूर्ति के उद्देश्य से सरकार द्वारा जल संस्थान के माध्यम से जल संरक्षण व संचयन पर काफी व्यय किया जाता है लेकिन इसके बावजूद भी गर्मियों में पेयजल समस्या रूपी सुरसा मुंह फैलाये रहती है.
      मनरेगा योजनान्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में पक्के रास्तों के निर्माण के बाद अब गर्मियों में पानी की किल्लत झेलते गाँवों में उचित स्थान पर वर्षा जल संचयन में स्थानीय निवासियों का सहयोग लेकर पेयजल समस्या निवारण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
      हालांकि जल विशेषज्ञों की कमी नहीं !! लेकिन अपने यात्रा अनुभवों के आधार पर सोचता हूँ कि यदि राजस्थान व जल न्यूनता वाले अन्य क्षेत्रों की तरह वर्षा ऋतु में पहाड़ों से व्यर्थ बहने वाले जल को ऊंचे पहाड़ी स्थानों पर ही और ग्राम स्तर पर ग्रामीणों के सहयोग से बड़ी-बड़ी टंकियां बनाकर संग्रहण व्यवस्था की जाय तो ये संचित जल, गर्मियों में निर्बाध पेयजल आपूर्ति में सहायक हो सकता है फलस्वरूप वर्षा जल से होने वाले भूमि कटाव व वन संपदा हानि में कमी आ सकती है. साथ ही ये संग्रहित जल हर साल जंगलों में लगने वाली आग को बुझाने के उपयोग में भी लाया जा सकता है।
जल संरक्षण व संचयन वक्त की पुकार भी है 

              क्योंकि “ जल है तो कल है और बिन पानी जग सून ! “


Tuesday 26 April 2016

पहाड़ !




          पहाड़ धरा पर एक उन्नत भूखंड मात्र ही नहीं है बल्कि पवित्र निश्छल प्रेरक समष्टि भी है जो साधक को झंझावातों में ईमानदारी व जीवट बनाए रखकर अडिग व अविचलित रहते हुए परिश्रम के मार्ग पर चलकर साध्य तक पहुंचने की प्रेरणा भी देता है।
            इसे पहाड़ का दुर्भाग्य कहा जाय !! या नीति निर्धारकों की अदूरदर्शिता !! लेकिन मर्मस्पर्शी कटु सत्य है कि आजादी के कई दशक बाद भी .. " पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी, अब तक भी पहाड़ के काम नहीं आ पाये हैं !! ..
             इस उक्ति को बदलने के संजीदगी भरे वादे किए गए मगर ...
             उक्ति बदले या न बदले ! फिलहाल ! अपना भाग्य बदलना "भाग्य विधाताओं" की प्राथमिकताओं में है ! ये जगत् जाहिर सत्य है!!
               हालिया लोकतंत्र महापर्व (चुनाव) मनाए लगभग दो साल हो लिए ! अब शायद ! नए महापर्व की आहट पर कोई नई "सार्थक" पहल हो !!
मगर पहाड़ न निराश है ! न हताश !! न कुंठित ही है !!! अडिग है और निरंतर अपना सहज धर्म निभा रहा है।
              फिलहाल, भीषण गर्मी में पहाड़ के रस से तर, इस प्राकृतिक स्रोत के शुद्ध जल से गले को तर कर लिया जाए !!


पहाड़ पर रात का सजग-समझदार व बहादुर प्रहरी : भोटिया कुत्ता



स्माइल प्लीज़ ...
         हालांकि दुआधार में अभी शाम के समय मौसम सुहावना है मगर ये महाशय गर्मी से परेशान से दिख रहे हैं !!.
         ठंडी जलवायु में रहने वाले, गंभीर स्वभाव के वफादार भोटिया प्रजाति के कुत्ते, अनावश्यक भौं-भौं या कुं-कूं किए बिना पहाड़ पर रात के सजग-समझदार व बहादुर प्रहरी हैं. ये अकेले ही बाघ से टक्कर लेने की हिम्मत रखते हैं और अगर दो हों तो बाघ जैसे बुद्धिमान व बलशाली जानवर को धराशायी कर देने की कुव्वत भी रखते हैं.
        भेड-बकरी पालने वाले घुमंतू लोग, जिन्हें गद्दी कहा जाता है इन भोटिया कुत्तों को अपनी व बकरियों की सुरक्षा की दृष्टि से सदैव अपने साथ रखते हैं. ये कुत्ते भेड़-बकरियों के झुण्ड के आगे-पीछे और दायें-बाएं, स्वाभाविक सुरक्षा व्यूह रचना में अपना-अपना मोर्चा संभाले साथ-साथ चलते रहते हैं.
          मौसम के अनुसार घुमंतू गद्दी लोगों का अपनी बकरियों के झुण्ड के साथ ठन्डे स्थानों की तरफ प्रवास जारी रहता है, एक ओर ठन्डे स्थान भेड़-बकरियों के शरीर क्रिया के अनुकूल होते हैं वहीँ व्यावसायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भेड़ों के शरीर पर महीन ऊँन, बहुत ठन्डे स्थानों पर ही उग पाती है.
            गद्दी लोग बकरियों के झुंडों को लेकर साथ-साथ चलते हैं लेकिन ये भोटिया कुत्ते सैकड़ों भेड़-बकरियों के अलग-अलग झुंडों में भी अपने झुण्ड की सैकड़ों भेड़-बकरियों को बखूबी पहचानते हैं. क्या मजाल जो कोई इनके झुण्ड की बकरियों, सामान या गद्दियों के बच्चों को हाथ लगा सके ! ऐसा करने पर बिना किसी पूर्व चेतावनी के उस व्यक्ति या जानवर पर तुरंत आक्रमण कर सकते हैं !
गद्दियों की विशेष सांकेतिक आवाज को समझने वाले ये कुत्ते विला-वज़ह न भौंकते हैं ! न आक्रमण करते हैं !!
       मैंने भोटिया कुत्तों को कई वर्ष पाला है इसलिए इनकी आदतों व व्यवहार से वाकिफ हूँ। इनकी वफादारी सजग पहरेदारी पर स्वयं प्रत्यक्ष अनुभूत कई रोचक किस्से भी हैं .. प्रसंग आने पर फिर कभी ! फिर भी कहूंगा कि बकरियों के साथ शांत व मस्त चाल में चलते इन भोटिया कुत्तों से सावधान रहने में ही भलाई है !!



Thursday 21 April 2016

सेवा और सेवा के अलग-अलग स्वरुप !!



सेवा और सेवा के अलग-अलग स्वरुप !!

         आधुनिक जीवन शैली में एक ओर महंगे विदेशी नस्ल के कुत्तों को पालना, सेवा की तुलना में स्व वैभव प्रदर्शित करने का जरिया अधिक बनता जा रहा है वहीँ मानव तिरस्कार झेलते भोजन की तलाश में सड़कों पर आवारा घूमते देशी नस्ल के कुत्ते बहुतायत में देखे जा सकते हैं जो कई बार परेशानी का सबब भी बन जाते हैं.
        हमारे आध्यात्मिक दर्शन व संस्कृति में कण-कण में और हर जीव में ईश्वर का अंश व वास माना गया है. इजराइल से आई ये तीन उम्रदराज पर्यटक महिलाएं उसी दर्शन को मूर्त रूप में चरितार्थ करती जान पड़ती हैं.
        राम झूला से लक्ष्मण झूला की तरफ बढ़ते हुए गंगा किनारे भीषण गर्मी में एक बीमार आवारा कुत्ते की ग्लूकोज लगाकर सेवा में मग्न, पशु चिकित्सा से जुडी इन तीन इजराइली महिलाओं ने बरबस ही ध्यान आकर्षित कर दिया !! जानकारी लेने पर पता लगा कि ये इस कुत्ते की कई दिनों से लगातार चिकित्सा कर रही हैं. केवल इस कुत्ते की ही नहीं ! बल्कि अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर, अपने वतन से बहुत दूर, प्रचार, सरकारी अनुदान या दान आदि की बिना चाहत के, इस धार्मिक व पर्यटन क्षेत्र के हर आवारा बीमार कुत्ते की पिछले तीन माह से व्यक्तिगत रूप से नि:स्वार्थ चिकित्सा कर रही हैं. सोचता हूँ पशु सेवा के माध्यम से ये अप्रत्यक्ष रूप से मानव सेवा ही है .
       विडंबना जानिए ! विदेशियों के इस पशु सेवा भाव में व्यावसायिक मानसिकता रखने वाले कुछ स्थानीय लोगों ने अपनी आमदनी का जरिया भी खोज लिया है ! इस क्रम में कुछ बाबा टाइप व कुछ स्थानीय लोगों ने आवारा कुत्ते पाल लिए हैं. विदेशियों को आकर्षित करने के लिए ये लोग विदेशियों के सामने पाल्य कुत्ते की सेवा करने का खूब ढोंग करते हैं !! विदेशी इस सेवा भाव के छलावे में आकर मालिक को कुत्ते की सेवा के लिए खूब धन देते हैं ! लेकिन विडंबना !! विदेशियों के स्वदेश लौटते ही ये स्वार्थी लोग उन कुत्तों को फिर कहीं दूर आवारा छोड़ देते हैं !! शायद ये लोग भूल जाते हैं कि इस तरह के आचरण से विदेशों में हमारी संस्कृति व सभ्यता को लेकर गलत संदेश भी जाता है !


Wednesday 20 April 2016

जख्या




The Great Himalayan

TADKA.." JAKHYA "" जख्या "

         " जख्या "....वानस्पतिक नाम ..Cleome viscose ......इसे " तड़कों का राजा " कहें तो अतिशयोक्ति न होगी ...आकार में सरसों के दानों से कुछ छोटा होता है पहाड़ी इलाकों में अपेक्षाकृत कुछ गर्म स्थानों पर खेतों की मेंड़ पर या निर्जन जगह पर इसके पौधे अपने आप हर साल उग जाते है. मैंने तो यहाँ दिल्ली में इसको गमले में उगाया है ... साल भर इसके बीज का तड़का ...खास कर बिना रस वाली सब्जियों जैसे उबले आलू,सीताफल, हरी सब्जियों का स्वाद बढाता रहता है..लोग स्वादानुसार कई सब्जियों व दालों में इसका तड़का पसंद करते हैं..विशेषता ये भी है कि यदि लापरवाही के कारण जल भी जाए तो स्वाद और भी अच्छा महसूस होता है...मेरे कई मैदानी क्षेत्रों के मित्रों ने इसका स्वाद चखा ...सभी इसके मुरीद हो गए ....उत्तराखंड से उनके लिए " जख्या " लाना नही भूलता हूँ ..ये रखे-रखे ख़राब भी नही होता...उत्तराखंड के अलावा ये दक्षिणी भारत में भी होता है ..

Wednesday 13 April 2016

चंपा ..भँवर न आयें पास



चंपा ..भँवर न आयें पास....

              विद्यालय भवन के प्रथम तल पर हमने अपनी कक्षा के बाहर 10-12 बड़े गमलों में कुछ सज्जाकार और कुछ फूल वाले पौधे लगाए हैं जिनकी देखभाल मेरी कक्षा के बच्चे स्व सुविधानुसार स्वेच्छा से करते है.
आज सुगंध बिखेरते खूबसूरत चंपा (Plumeria) के खिले हुए पुष्प गुच्छ ने अपनी तरफ आकर्षित कर दिया...कामदेव के पाँच फूलों में गिने जाने वाले परागहीन, सुगंध बिखेरते चंपा के फूल पर भँवरे और मधुमक्खियाँ नहीं बैठती इस सम्बन्ध में पौराणिक कथाओं में कुछ इस तरह कहा गया है..


  
चम्पा तुझमें तीन गुण-रंग रूप और वास,
  अवगुण तुझमें एक ही भँवर न आयें पास..
रूप तेज तो राधिके, अरु भँवर कृष्ण को दास,
  इस मर्यादा के लिये भँवर न आयें पास..

Saturday 2 April 2016

सबका प्यारा, नीम मेरा..



सबका प्यारा, नीम मेरा..

सरसराहट के साथ !!
पीली पत्तियों का
मेरे ऊपर बरसना !!
रुकने को मजबूर करती
प्यारे नीम की ये अदा !!
लम्बे समय से
संवाद नही हुआ था नीम से मेरा !!
संकोच था बहुत !!
हिम्मत करके पूछा नीम से
“कहो नीम !! कैसे हो ??”
हठ पुरानी अब भी
बरकरार थी नीम में
बालहठ मिश्रित नाराजगी
साफ झलक दिख रही थी नीम में
समेट टहनियों को
बतलाने लगा,
मन के उद्गारों को
इस तरह सुनाने लगा !
बात करते नहीं
पास से गुज़रते हुए ?
आपने ही तो उगाया था
मुझको प्यार से.
गुजरते हो जब भी याद आता है
मुझको बचपन मेरा !!
दातुन करने को
लोगों का तब
मेरी टहनियों को ले जाना !
क्रूर हाथों की हद से
बचाने की कोशिश में
आपका टहनियों को,
सलीखे से ऊँचा बांधना !
खाल मेरी नोंच कर
निर्दयी लोगों का ले जाना !
और सुबह देखकर
गुस्से में आपका बडबडाना !!
मिटटी औ गोबर लेपकर
टाट-पट्टियों से
मुझको लपेटना !
सुनकर बातें इस तरह नीम की,
भाव विह्वल हुआ ह्रदय
यादें ताज़ा हो गईं !!
तब सकोमल नन्हा सा था, नीम मेरा !
“ नीम !! युवा हो गए हो तुम
संतोष है मुझको बहुत,फ़र्ज़ पूरा कर सका,
कर्ज धरती का,
कुछ इस तरह निपटा सका !! “
नीम से बस इतना ही कह सका !
निहारिये आप, दस सालों में
कैसे बढ़ा, जवां कितना हुआ !
सबका प्यारा, नीम मेरा !
^^ विजय जयाड़ा



पहाड़ में ऊँचाइयों पर बुरांश (rhododendron) खिलने लगा है. बुराँश खिलने के बाद पूरा जंगल रक्तिम आभामय हो जाता है बुरांश का घंटी सदृश फूल गंध रहित होता है. बचपन में इन फूलों को खूब चाव से खाते थे होंठ लाल-लाल हो जाते थे.. उत्तराखंड जन-जीवन और संस्कृति में रचे-बसे बुरांश के फूल को, श्री रतूड़ी जी, अज्ञेय जी, पन्त जी, श्री कान्त वर्मा जी जैसे नामचीन कवियों ने अपनी रचनाओं में महत्व दिया दिया है. बुरांश को राजस फूल माना जाता है ।
प्रस्तुत है बुरांश पर एक प्रयास .... ..
बुरांश
 रौद्र रूप धर आज योद्धा
ऊँचाई पर आ डटा

खुशबु छल से ले गयी हवाएं
क्रोध में
लौट अब तक आई नहीं..
रक्तवर्ण हो रहा क्रोध में
उन हवाओं के इंतज़ार में..
घंटियाँ भी सुनसान सी हैं
सुर बहका ले गया कोई..
सूनी सी अब घंटियाँ हैं !
सुर लौट आने के इंतज़ार में ..
लौटा दो छलिया हवाओं
खुशबु तुम वीर बुरांश की
सुर बहका ले जाने वाले
घंटिया बजने दो बुरांश की ...
बुरांश के रक्तिम क्रोध से
सघन वन पूरा सहमा हुआ !!
धीरे – धीरे पूरा सघन वन
वीर बुरांश के क्रोध से मानो...
आज फिर दावानल हुआ !!
.... विजय जयाड़ा 03.04.15

मेरा नया दोस्त ! ' गिल्लू '





मेरा नया दोस्त ! ' गिल्लू '

                   मन हुआ ! अपने नए नन्हे दोस्त गिल्लू से आपका परिचय करा दूँ...
           आज शाम को गिलहरी के इस बच्चे को घर के सामने घायलावस्था में कुत्तों से घिरा निरीह सा पाया !!
             सोचता हूँ..माँ से बिछुड़ चुकी इस छोटी सी घायल गिल्लू को माँ ममता सम वृहत स्नेह छाँव दे पाना शायद हमारे लिए संभव नहीं !! लेकिन अंजुली भर ममतामय स्नेह आलिंगन तो दे ही सकते हैं ..
अपने स्वाभाविक आवास से बिछुड़े इस बच्चे को देखकर कवि श्रेष्ठ श्री हरिवंश राय बच्चन साहब द्वारा रचित, बाल कविता " गिलहरी का घर " याद आ गयी .. महादेवी वर्मा जी की कहानी "गिल्लू" से तो आप अवश्य परिचित होंगे !!
 
एक गिलहरी एक पेड़ पर
बना रही है अपना घर,
देख-भाल कर उसने पाया
खाली है उसका कोटर ।
कभी इधर से, कभी उधर से
कुदक-फुदक घर-घर जाती,
चिथड़ा-गुदड़ा, सुतली, तागा
ले जाती जो कुछ पाती ।
ले जाती वह मुँह में दाबे
कोटर में रख-रख आती,
देख बड़ा सामान इकट्ठा
किलक-किलककर वह गाती ।
चिथड़े-गुदडे़, सुतली, धागे ---
सब को अन्दर फैलाकर,
काट कुतरकर एक बराबर
एक बनायेगी बिस्तर ।
फिर जब उसके बच्चे होंगे
उस पर उन्हें सुलायेगी ,
और उन्हीं के साथ लेटकर
लोरी उन्हें सुनायेगी
-हरिवंशराय बच्चन

Wednesday 30 March 2016

प्रकृति




अरे वाह !! यहाँ तो ठहाकों का दौर चल रहा है !! लगता है पुराने दोस्त लम्बे अर्से के बाद मिले हैं !! और बचपन में की गई कोई शरारत याद आ गई है !!

Thursday 17 March 2016

रुद्राक्ष ( Elaeocarpus granitrus ) ... एक ऊर्जा कवच ( An Energy Shield )




रुद्राक्ष ( Elaeocarpus granitrus ) 

 एक ऊर्जा कवच ( An Energy Shield )

              बचपन से घर में रुद्राक्ष को देखकर उसके पेड़ के बारे में तरह-तरह की कल्पना करता था लेकिन प्रत्यक्ष रूप से पेड़ नहीं देखा था. ऋषिकेश में अबकी बार जिक्र किया तो 4-5 जगह रुद्राक्ष के पेड़ों को प्रत्यक्ष देख पाया. रुद्राक्ष अर्थात रूद्र (भोले) की आँखों से गिरी बूँद, जो वृक्ष के रूप में विकसित हुई. भारतीय अध्यात्म में रुद्राक्ष के महत्व में आप सभी किसी न किसी रूप में परिचित हैं.
रुद्राक्ष, अखरोट की तरह फल की गुठली है अध्यात्म में इसका महत्व इस पर उपस्थित स्पष्ट फलकों के आधार पर सुनिश्चित किया गया है. गंगा की तराई में उगने वाले रुद्राक्ष के वृक्ष 3 - 4 साल में फल देने लगते हैं. रुद्राक्ष का प्रयोग जप व धारण करने में किया जाता है. रुद्राक्ष को मुख्य रूप से स्व उर्जा क्षरण या अपव्यय को रोकने व विषम उर्जा के संपर्क में आने पर उस उर्जा से टकराव के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले दोषों जैसे व्यग्रता, उत्तेजना, घबराहट से बचाव के लिए, धारण किया जाता है. रुद्राक्ष व्यक्ति के चारों तरफ अदृश्य उर्जा आवरण (cocoon) बना देता है. जिससे व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से नकारात्मक या विषम उर्जा के संपर्क में नहीं आ पाता..
           प्राचीन काल में सन्यासियों का एक स्थान पर एक से अधिक बार रुकना वर्जित था जिस कारण उनको विभिन्न स्थानों पर अलग- अलग उर्जा क्षेत्रों के संपर्क में आना होता था अत: उन क्षेत्रों के विषम उर्जा से टकराव उत्पन्न होना स्वाभाविक था, इस परिस्थितियों में धारण किया गया रुद्राक्ष उनके चारों तरफ अदृश्य उर्जा आवरण बनाकर उस स्थान की विपरीत उर्जा से दूर रखने में सहायक होता था.इस तरह सन्यासी अपना ध्यान निर्विघ्न केन्द्रित कर पाते थे. व स्थान से बिना व्यग्रता, उत्तेजना, घबराहट आदि दोषों के साम्यता बना पाते थे. आज की तेज रफ़्तार जिंदगी में गृहस्थ को भी कार्यवश् अकसर स्थान परिवर्तन कर अलग-अलग स्थानों पर जाना होता है जिस कारण विषम उर्जा के संपर्क में आने पर व्यग्रता, उत्तेजना, घबराहट जैसे दोष आने की सम्भावना होती है इस स्थिति में रुद्राक्ष का महत्व और भी बढ़ जाता है..
         रुद्राक्ष को विधि सम्मत धारण करने, तामसी भोजन से दूरी व शुद्धता बनाये रखने पर ही उचित फल प्राप्त हो सकता है.. शास्त्रों में 1 से 21 मुखी तक के रुद्राक्षों के बारे में कहा गया है लेकिन प्रमाणिक तौर पर 14 मुखी तक ही रुद्राक्ष पाए जाते हैं.
             कुटिल तरीकों से लाभार्जन की व्यावसायिक मनोवृत्ति रुद्राक्ष व्यापार में भी हावी है. इतना बताना चाहूँगा शुद्ध रुद्राक्ष जल में डूब जाता है, 6 घंटे तक पानी में उबालने पर भी क्षरित नहीं होता . खरीदते समय ध्यान रखियेगा, रुद्राक्ष आंवले के सदृश हो व उस पर घाटियाँ व पर्वत सदृश रचनाएँ एवं फलक स्पष्ट हों. अस्पष्ट व अविकसित फलक वाले व खंडित रुद्राक्ष धारण नहीं करने चाहिए.
आयुर्वेद के अनुसार रात में रुद्राक्ष को जल में भिगोकर सुबह उस जल को पीने से उच्च रक्त चाप से पीड़ित व्यक्तियों को काफी लाभ होता है.
               आजकल तेज रफ़्तार होती जिंदगी में सामान्य रूप से, अनिश्चितता, मन उचाट, मानसिक दबाव व एकाग्रता की कमी से जूझते हैं. इस स्थिति में आसानी से व कम दामों पर मिलने वाला पांच मुखी रुद्राक्ष बहुत ही लाभदायक है .................16.03.15

Sunday 13 March 2016

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - तीन



अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !!

पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - तीन

यह कदम्ब का पेड़ अगर होता यमुना तीरे
    मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे !!

        वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अगर देखा जाय तो दिल्ली में निष्प्राण व बेहाल यमुना को देखकर सुभद्रा कुमारी चौहान जी की ये पंक्तियाँ दुर्भाग्यवश अप्रासंगिक सी जान पड़ती हैं !!
         ये दृश्य गंगा नदी का है लेकिन सोचता हूँ क्या दिल्ली में यमुना इतनी ही निर्मल व स्वच्छ दिख सकेगी !! यमुना की इलाहबाद तक की कुल 1376 किमी. तक की यात्रा के दिल्ली में यात्रा के दौरान वजीराबाद से ओखला बैरेज तक 22 किमी. की दूरी का क्षेत्र का यमुना के कुल प्रदूषण में लगभग 79 % (साभार: इण्डिया वाटर पोर्टल) का हिस्सा है. यदि इस हिस्से को गन्दगी मुक्त करने की जिम्मेदारी, राजनीतिक पूर्वाग्रहों को त्यागकर, राज्यपाल, शहरी विकास, पर्यटन मंत्री रह चुके कुशल व सख्त प्रशासक श्री जगमोहन साहब को सौंप दी जाय तो निश्चित ही निष्प्राण यमुना फिर से प्राणवान हो सकती है (व्यक्तिगत विचार). इस क्रम में विभिन्न राजनीतिक दबावों के बावजूद भी अपने काम को निर्भीकता और कुशलता से अंजाम देने वालों में पूर्व चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन साहब व मेट्रो एम डी. श्रीधरन साहब भी उल्लेखनीय नाम हैं.
        दिलों में अपनी खूबसूरत पहचान खोती जा रही प्राकृतिक व सांस्कृतिक धरोहर, यमुना को पुनर्जीवित करने के निहितार्थ विभिन्न केंद्र सरकारों द्वारा अब तक किये गए प्रयासों में हजारों करोड़ रूपये यमुना में बहाए जा चुके हैं ! लेकिन यमुना की स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है !! इस कारण अब युद्ध स्तर पर प्रयास किये जाने आवश्यकता है. जिससे लन्दन की खूबसूरती बढ़ाती, टेम्स नदी की तरह यमुना भी दिल्ली की खूबसूरती में चार चाँद लगा सके और यमुना के गौरवमयी अतीत की वापसी सुनिश्चित हो सके.
         गंगा और यमुना को यदि परिदृश्य से हटा दिया जाय तो हमारी संस्कृति व कृषि निष्प्राण सी लगती है. सोचता हूँ दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के आगे कुछ भी असंभव नहीं !! अकेले टेम्स ही नहीं दुनिया की कई नदियां ऐसे ही साफ़ की गईं हैं. जर्मनी में राइन, दक्षिण कोरिया में हान और अमरीका में मिलवॉकी नदियों को दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के बल पर ही पुनर्जीवित किया जा सका है ..


Thursday 10 March 2016

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - दो



अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !!

पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - दो

         नदियाँ, संस्कृति व समृद्धि का पर्याय ही नहीं बल्कि प्राकृतिक सौन्दर्य की पूरक भी हैं. लन्दन के बीचों-बीच बहकर शहर की खूबसूरती बढ़ाती टेम्स नदी भी कभी यमुना की तरह मृत होकर बीमारियों की जड़ बन चुकी थी. टेम्स नदी इतनी प्रदूषित हो गयी थी कि 1858 में इससे उठती भयंकर दुर्गन्ध के कारण संसद की कार्यवाही तक रोकनी पड़ी.. इसके बाद वहां की सरकार चेती और ईमानदारी से लगातार 50 वर्षों के सघन प्रयासों के उपरांत टेम्स पुन: अपने खूबसूरत स्वच्छ निर्मल रूप में आ सकी.
       अब मूल विषय पर चर्चा की जाय .. हिमालय के कालिंद शिखर से उद्गम से लेकर इलाहाबाद में गंगा में मिलने तक के यमुना के लगभग 1376 किमी. के सफ़र को पांच क्षेत्रों में बांटा गया है. इस सफ़र के अंतर्गत यमुना बहाव का सबसे छोटा व तृतीय क्षेत्र जो कि मात्र 22 किमी. का है दिल्ली महानगर के अंतर्गत आता है. यही क्षेत्र प्रदूषण की दृष्टि से यमुना के सफर में सबसे भयानक पड़ाव है जहाँ मैले नालों का पानी और कूड़ा-कचरा, कुल प्रदूषण में 79 % का हिस्सेदार बनकर, यमुना को सबसे अधिक विषैला करके उसे मृत घोषित करने को मजबूर कर देता है !! अकेले इस क्षेत्र में 22 गंदे नालों के जरिये प्रतिदिन लगभग 300 करोड़ ली. अपशिष्ट जल यमुना में छोड़ा जाता है. इसी कारण यमुना सफाई के लिए चलाया गया द्वितीय यमुना एक्शन प्लान केवल दिल्ली में यमुना की सफाई पर केन्द्रित किया गया था.
     दिल्ली, यमुना में केवल गन्दगी ही नहीं डाल रही है बल्कि यमुना के तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण करके, यमुना बैंक व शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन अक्षरधाम मन्दिर, मिलेनियम बस डिपो, कॉमनवेल्थ खेल गाँव, इन्दिरा गाँधी इनडोर स्टेडियम सहित हजारों झुग्गी-झोपड़ियाँ भी बन गई है.
     DND पुल के पास यमुना खादर में “ आर्ट ऑफ़ लिविंग “ के सौजन्य से एक ताजा अस्थायी अतिक्रमण आजकल सुर्ख़ियों में है. 11 मार्च से 13 मार्च तक ध्वनि विस्तारक यंत्रों व तेज प्रकाश की पृष्ठभूमि में विश्व प्रेम और शान्ति का सन्देश के देने नाम पर श्री श्री रविशंकर और उनके अनुयायियों द्वारा आयोजित किये जा रहे विश्व सांस्कृतिक महोत्सव, का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री और समापन माननीय राष्ट्रपति करेंगे. इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले अनुमानित 35 लाख लोगों की व्यवस्था हेतु नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ((एनजीटी) के आदेशों का खुलम्म खुल्ला उल्लंघन करते हुए शांत यमुना खादर के एक बड़े भाग की प्राकृतिक भू स्थिति को अर्थ मूवर, जेनरेटर, जे सी वी, ट्रकों के उपयोग से रौंदकर और अशांत करके जैव विविधता को समाप्त कर स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को ध्वस्त कर दिया गया है ! 

         आयोजन के माध्यम से प्रेम और शान्ति के सन्देश के देने के क्रम में न जाने कितने पशु-पक्षी और जीवों के प्राकृतिक आवास समाप्त हो जायेंगे और तेज प्रकाश व ध्वनि विस्तारक यंत्रों द्वारा उच्च आवृत्ति वाली ध्वनियों के उपयोग से किस हद तक क्षेत्र के बचे-खुचे जीव व पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होगा इसका अनुमान आप स्वयं ही लगा सकते हैं. ध्यान देने योग्य यह भी है कि जिन क्षेत्रों में आर्ट ऑफ़ लिविंग संगठन कार्य कर रहा है उनमे एक क्षेत्र “ पर्यावरण स्थिरता “ भी है !!
      हालांकि गठित प्रिंसिपल कमेटी ने NGT को जमा की गयी रिपोर्ट में कहा है कि आर्ट ऑफ़ लिविंग संगठन से कार्यक्रम प्रारंभ होने से पूर्व 120 करोड़ रुपये का क्षतिपूर्ति हर्जाना वसूला जाय और सम्बंधित क्षेत्र में पूर्ववत भौगोलिक पुनर्स्थापना भी सुनिश्चित की जाय ..
        अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत ! प्रदूषण नियंत्रण के लिए नियुक्त कलयुगी “ कृष्ण “.. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी और जिला आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण ने यदि कार्यक्रम के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र देते हुए इतनी जल्दबाजी न दिखाई होती तो ये स्थिति न आती ..
प्रश्न उठता है कि यदि हर्जाना वसूल भी लिया जाय तो क्या हम स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को पुन: उसी रूप में स्थापित कर पायेंगे !! हम इसी लचर इच्छा शक्ति के बल पर दिल्ली में बहती यमुना को टेम्स की तरह खूबसूरत और स्वच्छ बना पायेंगे !! क्या हम इसी लचर इच्छा शक्ति के बल पर यमुना सफाई पर हजारों करोड़ रुपये व्यय करने के बाद भी हम मृत यमुना को टेम्स की तरह पुनर्जीवित कर इस प्राकृतिक धरोहर का गौरवशाली अतीत लौटा पायेंगे !!
विभिन्न यमुना एक्शन प्लान्स, जिनमें 2015 तक यमुना को पूर्णतया प्रदूषण मुक्त करने की कार्य योजना तय की गई थी के बाद यमुना की वर्तमान स्थिति देखकर सोचता हूँ ! जब टेम्स नदी की तरह यमुना की सडांध संसद तक पहुंचकर संसदीय कार्यवाही रोककर स्वयं को स्वच्छ करने को गरियाएगी ! शायद ही हमारे सफेदपोश राजनेताओं की नींद खुलेगी !!
         अंत में सोचता हूँ शायद !! प्रागैतिहासिक काल से निरंतर प्रेम - शांति - समृद्धि का सन्देश देती माँ यमुना को कलयुग में हमने अनियंत्रित " विकास " के कारण उस लायक अब नहीं रखा !! और अब माँ यमुना के स्थान पर हम स्वयं ही विश्व शांति और प्रेम का सन्देश देने इसके तट पर भव्य अतिक्रमण कर डेरा डाल कर पहुँच गए हैं ..

 

आयोजन की तैयारियों में जुटे अर्थ मूवर, जे सी वी,जेनरेटर

आयोजन हेतु समतल कर दिया गया खादर क्षेत्र 
आवाजाही के लिए निर्माणाधीन पन्टून पुल
आयोजन स्थल के पास से बहती मृतप्राय यमुना 
यमुना खादर 
कूड़े-कचरे और गंदे नालों के अपशिष्ट  ढोती यमुना 
DND फ्लाई ओवर पर लगाया गया बोर्ड

Wednesday 2 March 2016

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! .. एक विवेचना .: भाग - एक





 

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! .. 

एक विवेचना .: भाग - एक

          आज DND (  दिल्ली – नोएडा ) फलाई ओवर के ऊपर से गुजर रहा था. मन हुआ यमुना नदी की पृष्ठभूमि में एक तस्वीर क्लिक की जाय ! बाइक रोकी .. पुल के नीचे जल राशि पर नजर डाली तो विश्वास नहीं हुआ कि ये यमुना नदी है ! सोचा ! शायद, बरसात में जमुना खादर के किसी कुंड में इकठ्ठा हुआ पानी है जो कई महीनों तक इकठ्ठा रहने के कारण काला कीचड़ बन गया है !! तभी पुल पर लगा एक सुन्दर सा बोर्ड दिखा जिस पर लिखा था .... 
                                   “ मेरी दिल्ली.. मेरी जमुना .. गन्दगी हटाओ .. जमुना बचाओ “
.....अब पूर्ण विश्वास हो गया कि ये यमुना नदी ही है !!
           यमुना नदी की बात चले और चिर-परिचित, श्री कृष्ण द्वारा कालिय नाग मर्दन प्रसंग का जिक्र न हो तो शायद बात अधूरी ही रह जायेगी !! प्रसंग से तो आप अच्छी तरह विज्ञ हैं लेकिन मैं इस प्रसंग की पूर्व क्षमा सहित वर्तमान सन्दर्भ में विवेचना अवश्य करना चाहूँगा .....
            रमण द्वीप निवासी पन्नग वंशी और कद्रू का पुत्र कालिय द्वापर युग में कोई बाहुबली भू माफिया ही रहा होगा, अतिक्रमण और प्रदूषण फ़ैलाने की प्रवृत्ति के कारण ही प्रचलित प्रसंग में उसे प्रतीक रूप में नाग के रूप में प्रस्तुत किया गया होगा. रमण पर्वत पर पर्यावरण विपरीत कार्यों के चलते जब वहां के राजा गरुड़, कालिय पर क्रोधित हुए तो कालिय नाग अपनी जान बचाने के लिए अपने गैंग के साथ यमुना के किनारे सुनसान खादर क्षेत्र में आकर रहने लगा. लेकिन उसने अपनी मूल प्रवृत्ति को यहाँ आकर भी नहीं त्यागा !!
            कालिय ने अपने गैंग के साथ मिलकर आस पास के लोगों में भय उत्पन्न कर यमुना खादर में अतिक्रमण करके और पर्यावरण विपरीत कृत्यों से जमुना खादर जल कुंडों में इतना अधिक रासायनिक प्रदूषण फैलाया की उन कुंडों का जल अति विषाक्त हो गया जो रासायनिक क्रियाओं के कारण गर्म होकर खौलता रहता था. इस कारण क्षेत्र की जैव विविधता नष्ट होने लगी और जल पीने वाले पक्षी और पशुधन मृत्यु को प्राप्त होने लगा ..
                  उस काल में पशु धन को सबसे अधिक महत्व दिया जाता था. कालिय के कुकृत्यों के कारण जब जन जीवन बहुत अधिक प्रभावित होने लगा तो श्री कृष्ण ने क्रोधित होकर इस बाहुबली भू माफिया कालिय का मर्दन करके स्थानीय लोगों को राहत दिलाई तथा यमुना क्षेत्र के पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त किया ..
                आज के सन्दर्भ में सोचता हूँ कि आज कलयुग में कालिय की वंश वृद्धि बहुत बहुत तेजी से हुई है ! एकाधिक कालिय और उनके गैंग साथियों को पकड़ने के लिए एक नहीं बल्कि कई कृष्ण तैनात किये गए हैं !! और इस कार्य के लिए उनको अच्छा खासा वेतन भी दिया जाता है लेकिन लगता है कलयुगी कृष्णों ने कालिय से मिलीभगत कर गठबंधन बना लिया है !!

               जब खेत की बाड़ ही खेत को खाने लगे तो भला खेत को कौन बचा सकता है !! यमुना किंकर्तव्यविमूढ़ है !! हम कलियुगी पुत्र उसको समय-समय पर धमकाते रहते हैं !! साथ ही सुबह-सुबह ये मन्त्र उच्चारित कर स्वयं को नदियों के प्रति आस्थावान होने का भी खूब " प्रदर्शन " करते हैं .. लेकिन शायद !! ये मन्त्र हम नदियों के प्रति आस्था भाव से नहीं बल्कि उन पर धौंस जमाते हुए आज्ञा भाव में उच्चारित करते हैं !! 

                                       " गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
                                    नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु.. "

                              लेकिन “ पुत्रो कुपुत्रो जायते माता कुमाता न भवति” 
              यमुना आज भी निश्छल भाव में हम छली पुत्रों की प्यास बुझा रही है ! शांत प्रवाहमय है !!
मन में प्रश्न उठा !! कि क्या कलयुग में फिर श्री कृष्ण के अवतरित होने तक यमुना यूँ ही विषाक्त होती रहेगी ? या यमुना को माँ का दर्जा देने वाले हम पुत्रों को माँ यमुना के निरंतर मैले कुचैले होते आंचल को साफ़ रखने में आत्मा की आवाज़ पर आगे बढ़कर योगदान देना होगा ?


DND (  दिल्ली – नोएडा ) फ्लाई ओवर से यमुना का दृश्य


                                                ऋषिकेश के पास गंगा नदी का स्वच्छ जल.. 
जब यमुना उत्तराखंड क्षेत्र में बहती है तो बिलकुल ऐसा ही स्वच्छ जल यमुना नदी का भी दिखाई देता है .. क्या कभी मैदानी क्षेत्र में ये दोनों नदियाँ इतनी ही स्वच्छ दिख पाएंगी

 यमुना जल !! 
जय हो यमुना मैया !!
हम सबने मिलकर क्या हाल कर दिया है यमुना का !!

Monday 29 February 2016

यकीन कीजिए ! " बड़के स्वीट हर्ट " हैं अपने बरगद दादा !!




यकीन कीजिए ! " बड़के स्वीट हर्ट " हैं अपने बरगद दादा !! 


        हौजखास परिसर में बैठे कुछ प्रेम परिंदे बतरस पान कर रहे रहे थे और कुछ " स्वीट हर्ट " के साथ सेल्फी लेने में मग्न दिख रहे थे.
         तभी देखा !! बरगद दादा अपने पूरे रुआब और शबाब में कुछ अकड़े-अकड़े से खड़े थे. लेकिन माशा अल्लाह ! बहुत जच रहे थे ! सोचा ! क्यों न बरगद दादा के साथ एक फोटो क्लिक की जाय ! इच्छा जताई !!      
         बरगद दादा ने खुशी-खुशी हामी भर दी ... तब समझ आया, दादा क्यों अकड़े-अकड़े दिख रहे थे !!
         आप इधर आइएगा तो बरगद दादा के साथ तस्वीर अवश्य क्लिक कीजिएगा। यकीन कीजिए ! बड़के स्वीट हर्ट हैं अपने बरगद दादा !! सेल्फी पर खूब चर्चा की जाती है। चलिए हम भी वृक्षों से मित्रता बढाने के लिए वृक्षों के साथ फोटो क्लिक करने हेतु जन-जागरण अभियान चलाते हैं।