Saturday, 2 April 2016

सबका प्यारा, नीम मेरा..



सबका प्यारा, नीम मेरा..

सरसराहट के साथ !!
पीली पत्तियों का
मेरे ऊपर बरसना !!
रुकने को मजबूर करती
प्यारे नीम की ये अदा !!
लम्बे समय से
संवाद नही हुआ था नीम से मेरा !!
संकोच था बहुत !!
हिम्मत करके पूछा नीम से
“कहो नीम !! कैसे हो ??”
हठ पुरानी अब भी
बरकरार थी नीम में
बालहठ मिश्रित नाराजगी
साफ झलक दिख रही थी नीम में
समेट टहनियों को
बतलाने लगा,
मन के उद्गारों को
इस तरह सुनाने लगा !
बात करते नहीं
पास से गुज़रते हुए ?
आपने ही तो उगाया था
मुझको प्यार से.
गुजरते हो जब भी याद आता है
मुझको बचपन मेरा !!
दातुन करने को
लोगों का तब
मेरी टहनियों को ले जाना !
क्रूर हाथों की हद से
बचाने की कोशिश में
आपका टहनियों को,
सलीखे से ऊँचा बांधना !
खाल मेरी नोंच कर
निर्दयी लोगों का ले जाना !
और सुबह देखकर
गुस्से में आपका बडबडाना !!
मिटटी औ गोबर लेपकर
टाट-पट्टियों से
मुझको लपेटना !
सुनकर बातें इस तरह नीम की,
भाव विह्वल हुआ ह्रदय
यादें ताज़ा हो गईं !!
तब सकोमल नन्हा सा था, नीम मेरा !
“ नीम !! युवा हो गए हो तुम
संतोष है मुझको बहुत,फ़र्ज़ पूरा कर सका,
कर्ज धरती का,
कुछ इस तरह निपटा सका !! “
नीम से बस इतना ही कह सका !
निहारिये आप, दस सालों में
कैसे बढ़ा, जवां कितना हुआ !
सबका प्यारा, नीम मेरा !
^^ विजय जयाड़ा

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