Tuesday 26 April 2016

पहाड़ !




          पहाड़ धरा पर एक उन्नत भूखंड मात्र ही नहीं है बल्कि पवित्र निश्छल प्रेरक समष्टि भी है जो साधक को झंझावातों में ईमानदारी व जीवट बनाए रखकर अडिग व अविचलित रहते हुए परिश्रम के मार्ग पर चलकर साध्य तक पहुंचने की प्रेरणा भी देता है।
            इसे पहाड़ का दुर्भाग्य कहा जाय !! या नीति निर्धारकों की अदूरदर्शिता !! लेकिन मर्मस्पर्शी कटु सत्य है कि आजादी के कई दशक बाद भी .. " पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी, अब तक भी पहाड़ के काम नहीं आ पाये हैं !! ..
             इस उक्ति को बदलने के संजीदगी भरे वादे किए गए मगर ...
             उक्ति बदले या न बदले ! फिलहाल ! अपना भाग्य बदलना "भाग्य विधाताओं" की प्राथमिकताओं में है ! ये जगत् जाहिर सत्य है!!
               हालिया लोकतंत्र महापर्व (चुनाव) मनाए लगभग दो साल हो लिए ! अब शायद ! नए महापर्व की आहट पर कोई नई "सार्थक" पहल हो !!
मगर पहाड़ न निराश है ! न हताश !! न कुंठित ही है !!! अडिग है और निरंतर अपना सहज धर्म निभा रहा है।
              फिलहाल, भीषण गर्मी में पहाड़ के रस से तर, इस प्राकृतिक स्रोत के शुद्ध जल से गले को तर कर लिया जाए !!


पहाड़ पर रात का सजग-समझदार व बहादुर प्रहरी : भोटिया कुत्ता



स्माइल प्लीज़ ...
         हालांकि दुआधार में अभी शाम के समय मौसम सुहावना है मगर ये महाशय गर्मी से परेशान से दिख रहे हैं !!.
         ठंडी जलवायु में रहने वाले, गंभीर स्वभाव के वफादार भोटिया प्रजाति के कुत्ते, अनावश्यक भौं-भौं या कुं-कूं किए बिना पहाड़ पर रात के सजग-समझदार व बहादुर प्रहरी हैं. ये अकेले ही बाघ से टक्कर लेने की हिम्मत रखते हैं और अगर दो हों तो बाघ जैसे बुद्धिमान व बलशाली जानवर को धराशायी कर देने की कुव्वत भी रखते हैं.
        भेड-बकरी पालने वाले घुमंतू लोग, जिन्हें गद्दी कहा जाता है इन भोटिया कुत्तों को अपनी व बकरियों की सुरक्षा की दृष्टि से सदैव अपने साथ रखते हैं. ये कुत्ते भेड़-बकरियों के झुण्ड के आगे-पीछे और दायें-बाएं, स्वाभाविक सुरक्षा व्यूह रचना में अपना-अपना मोर्चा संभाले साथ-साथ चलते रहते हैं.
          मौसम के अनुसार घुमंतू गद्दी लोगों का अपनी बकरियों के झुण्ड के साथ ठन्डे स्थानों की तरफ प्रवास जारी रहता है, एक ओर ठन्डे स्थान भेड़-बकरियों के शरीर क्रिया के अनुकूल होते हैं वहीँ व्यावसायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भेड़ों के शरीर पर महीन ऊँन, बहुत ठन्डे स्थानों पर ही उग पाती है.
            गद्दी लोग बकरियों के झुंडों को लेकर साथ-साथ चलते हैं लेकिन ये भोटिया कुत्ते सैकड़ों भेड़-बकरियों के अलग-अलग झुंडों में भी अपने झुण्ड की सैकड़ों भेड़-बकरियों को बखूबी पहचानते हैं. क्या मजाल जो कोई इनके झुण्ड की बकरियों, सामान या गद्दियों के बच्चों को हाथ लगा सके ! ऐसा करने पर बिना किसी पूर्व चेतावनी के उस व्यक्ति या जानवर पर तुरंत आक्रमण कर सकते हैं !
गद्दियों की विशेष सांकेतिक आवाज को समझने वाले ये कुत्ते विला-वज़ह न भौंकते हैं ! न आक्रमण करते हैं !!
       मैंने भोटिया कुत्तों को कई वर्ष पाला है इसलिए इनकी आदतों व व्यवहार से वाकिफ हूँ। इनकी वफादारी सजग पहरेदारी पर स्वयं प्रत्यक्ष अनुभूत कई रोचक किस्से भी हैं .. प्रसंग आने पर फिर कभी ! फिर भी कहूंगा कि बकरियों के साथ शांत व मस्त चाल में चलते इन भोटिया कुत्तों से सावधान रहने में ही भलाई है !!



Thursday 21 April 2016

सेवा और सेवा के अलग-अलग स्वरुप !!



सेवा और सेवा के अलग-अलग स्वरुप !!

         आधुनिक जीवन शैली में एक ओर महंगे विदेशी नस्ल के कुत्तों को पालना, सेवा की तुलना में स्व वैभव प्रदर्शित करने का जरिया अधिक बनता जा रहा है वहीँ मानव तिरस्कार झेलते भोजन की तलाश में सड़कों पर आवारा घूमते देशी नस्ल के कुत्ते बहुतायत में देखे जा सकते हैं जो कई बार परेशानी का सबब भी बन जाते हैं.
        हमारे आध्यात्मिक दर्शन व संस्कृति में कण-कण में और हर जीव में ईश्वर का अंश व वास माना गया है. इजराइल से आई ये तीन उम्रदराज पर्यटक महिलाएं उसी दर्शन को मूर्त रूप में चरितार्थ करती जान पड़ती हैं.
        राम झूला से लक्ष्मण झूला की तरफ बढ़ते हुए गंगा किनारे भीषण गर्मी में एक बीमार आवारा कुत्ते की ग्लूकोज लगाकर सेवा में मग्न, पशु चिकित्सा से जुडी इन तीन इजराइली महिलाओं ने बरबस ही ध्यान आकर्षित कर दिया !! जानकारी लेने पर पता लगा कि ये इस कुत्ते की कई दिनों से लगातार चिकित्सा कर रही हैं. केवल इस कुत्ते की ही नहीं ! बल्कि अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर, अपने वतन से बहुत दूर, प्रचार, सरकारी अनुदान या दान आदि की बिना चाहत के, इस धार्मिक व पर्यटन क्षेत्र के हर आवारा बीमार कुत्ते की पिछले तीन माह से व्यक्तिगत रूप से नि:स्वार्थ चिकित्सा कर रही हैं. सोचता हूँ पशु सेवा के माध्यम से ये अप्रत्यक्ष रूप से मानव सेवा ही है .
       विडंबना जानिए ! विदेशियों के इस पशु सेवा भाव में व्यावसायिक मानसिकता रखने वाले कुछ स्थानीय लोगों ने अपनी आमदनी का जरिया भी खोज लिया है ! इस क्रम में कुछ बाबा टाइप व कुछ स्थानीय लोगों ने आवारा कुत्ते पाल लिए हैं. विदेशियों को आकर्षित करने के लिए ये लोग विदेशियों के सामने पाल्य कुत्ते की सेवा करने का खूब ढोंग करते हैं !! विदेशी इस सेवा भाव के छलावे में आकर मालिक को कुत्ते की सेवा के लिए खूब धन देते हैं ! लेकिन विडंबना !! विदेशियों के स्वदेश लौटते ही ये स्वार्थी लोग उन कुत्तों को फिर कहीं दूर आवारा छोड़ देते हैं !! शायद ये लोग भूल जाते हैं कि इस तरह के आचरण से विदेशों में हमारी संस्कृति व सभ्यता को लेकर गलत संदेश भी जाता है !


Wednesday 20 April 2016

जख्या




The Great Himalayan

TADKA.." JAKHYA "" जख्या "

         " जख्या "....वानस्पतिक नाम ..Cleome viscose ......इसे " तड़कों का राजा " कहें तो अतिशयोक्ति न होगी ...आकार में सरसों के दानों से कुछ छोटा होता है पहाड़ी इलाकों में अपेक्षाकृत कुछ गर्म स्थानों पर खेतों की मेंड़ पर या निर्जन जगह पर इसके पौधे अपने आप हर साल उग जाते है. मैंने तो यहाँ दिल्ली में इसको गमले में उगाया है ... साल भर इसके बीज का तड़का ...खास कर बिना रस वाली सब्जियों जैसे उबले आलू,सीताफल, हरी सब्जियों का स्वाद बढाता रहता है..लोग स्वादानुसार कई सब्जियों व दालों में इसका तड़का पसंद करते हैं..विशेषता ये भी है कि यदि लापरवाही के कारण जल भी जाए तो स्वाद और भी अच्छा महसूस होता है...मेरे कई मैदानी क्षेत्रों के मित्रों ने इसका स्वाद चखा ...सभी इसके मुरीद हो गए ....उत्तराखंड से उनके लिए " जख्या " लाना नही भूलता हूँ ..ये रखे-रखे ख़राब भी नही होता...उत्तराखंड के अलावा ये दक्षिणी भारत में भी होता है ..

Wednesday 13 April 2016

चंपा ..भँवर न आयें पास



चंपा ..भँवर न आयें पास....

              विद्यालय भवन के प्रथम तल पर हमने अपनी कक्षा के बाहर 10-12 बड़े गमलों में कुछ सज्जाकार और कुछ फूल वाले पौधे लगाए हैं जिनकी देखभाल मेरी कक्षा के बच्चे स्व सुविधानुसार स्वेच्छा से करते है.
आज सुगंध बिखेरते खूबसूरत चंपा (Plumeria) के खिले हुए पुष्प गुच्छ ने अपनी तरफ आकर्षित कर दिया...कामदेव के पाँच फूलों में गिने जाने वाले परागहीन, सुगंध बिखेरते चंपा के फूल पर भँवरे और मधुमक्खियाँ नहीं बैठती इस सम्बन्ध में पौराणिक कथाओं में कुछ इस तरह कहा गया है..


  
चम्पा तुझमें तीन गुण-रंग रूप और वास,
  अवगुण तुझमें एक ही भँवर न आयें पास..
रूप तेज तो राधिके, अरु भँवर कृष्ण को दास,
  इस मर्यादा के लिये भँवर न आयें पास..

Saturday 2 April 2016

सबका प्यारा, नीम मेरा..



सबका प्यारा, नीम मेरा..

सरसराहट के साथ !!
पीली पत्तियों का
मेरे ऊपर बरसना !!
रुकने को मजबूर करती
प्यारे नीम की ये अदा !!
लम्बे समय से
संवाद नही हुआ था नीम से मेरा !!
संकोच था बहुत !!
हिम्मत करके पूछा नीम से
“कहो नीम !! कैसे हो ??”
हठ पुरानी अब भी
बरकरार थी नीम में
बालहठ मिश्रित नाराजगी
साफ झलक दिख रही थी नीम में
समेट टहनियों को
बतलाने लगा,
मन के उद्गारों को
इस तरह सुनाने लगा !
बात करते नहीं
पास से गुज़रते हुए ?
आपने ही तो उगाया था
मुझको प्यार से.
गुजरते हो जब भी याद आता है
मुझको बचपन मेरा !!
दातुन करने को
लोगों का तब
मेरी टहनियों को ले जाना !
क्रूर हाथों की हद से
बचाने की कोशिश में
आपका टहनियों को,
सलीखे से ऊँचा बांधना !
खाल मेरी नोंच कर
निर्दयी लोगों का ले जाना !
और सुबह देखकर
गुस्से में आपका बडबडाना !!
मिटटी औ गोबर लेपकर
टाट-पट्टियों से
मुझको लपेटना !
सुनकर बातें इस तरह नीम की,
भाव विह्वल हुआ ह्रदय
यादें ताज़ा हो गईं !!
तब सकोमल नन्हा सा था, नीम मेरा !
“ नीम !! युवा हो गए हो तुम
संतोष है मुझको बहुत,फ़र्ज़ पूरा कर सका,
कर्ज धरती का,
कुछ इस तरह निपटा सका !! “
नीम से बस इतना ही कह सका !
निहारिये आप, दस सालों में
कैसे बढ़ा, जवां कितना हुआ !
सबका प्यारा, नीम मेरा !
^^ विजय जयाड़ा



पहाड़ में ऊँचाइयों पर बुरांश (rhododendron) खिलने लगा है. बुराँश खिलने के बाद पूरा जंगल रक्तिम आभामय हो जाता है बुरांश का घंटी सदृश फूल गंध रहित होता है. बचपन में इन फूलों को खूब चाव से खाते थे होंठ लाल-लाल हो जाते थे.. उत्तराखंड जन-जीवन और संस्कृति में रचे-बसे बुरांश के फूल को, श्री रतूड़ी जी, अज्ञेय जी, पन्त जी, श्री कान्त वर्मा जी जैसे नामचीन कवियों ने अपनी रचनाओं में महत्व दिया दिया है. बुरांश को राजस फूल माना जाता है ।
प्रस्तुत है बुरांश पर एक प्रयास .... ..
बुरांश
 रौद्र रूप धर आज योद्धा
ऊँचाई पर आ डटा

खुशबु छल से ले गयी हवाएं
क्रोध में
लौट अब तक आई नहीं..
रक्तवर्ण हो रहा क्रोध में
उन हवाओं के इंतज़ार में..
घंटियाँ भी सुनसान सी हैं
सुर बहका ले गया कोई..
सूनी सी अब घंटियाँ हैं !
सुर लौट आने के इंतज़ार में ..
लौटा दो छलिया हवाओं
खुशबु तुम वीर बुरांश की
सुर बहका ले जाने वाले
घंटिया बजने दो बुरांश की ...
बुरांश के रक्तिम क्रोध से
सघन वन पूरा सहमा हुआ !!
धीरे – धीरे पूरा सघन वन
वीर बुरांश के क्रोध से मानो...
आज फिर दावानल हुआ !!
.... विजय जयाड़ा 03.04.15

मेरा नया दोस्त ! ' गिल्लू '





मेरा नया दोस्त ! ' गिल्लू '

                   मन हुआ ! अपने नए नन्हे दोस्त गिल्लू से आपका परिचय करा दूँ...
           आज शाम को गिलहरी के इस बच्चे को घर के सामने घायलावस्था में कुत्तों से घिरा निरीह सा पाया !!
             सोचता हूँ..माँ से बिछुड़ चुकी इस छोटी सी घायल गिल्लू को माँ ममता सम वृहत स्नेह छाँव दे पाना शायद हमारे लिए संभव नहीं !! लेकिन अंजुली भर ममतामय स्नेह आलिंगन तो दे ही सकते हैं ..
अपने स्वाभाविक आवास से बिछुड़े इस बच्चे को देखकर कवि श्रेष्ठ श्री हरिवंश राय बच्चन साहब द्वारा रचित, बाल कविता " गिलहरी का घर " याद आ गयी .. महादेवी वर्मा जी की कहानी "गिल्लू" से तो आप अवश्य परिचित होंगे !!
 
एक गिलहरी एक पेड़ पर
बना रही है अपना घर,
देख-भाल कर उसने पाया
खाली है उसका कोटर ।
कभी इधर से, कभी उधर से
कुदक-फुदक घर-घर जाती,
चिथड़ा-गुदड़ा, सुतली, तागा
ले जाती जो कुछ पाती ।
ले जाती वह मुँह में दाबे
कोटर में रख-रख आती,
देख बड़ा सामान इकट्ठा
किलक-किलककर वह गाती ।
चिथड़े-गुदडे़, सुतली, धागे ---
सब को अन्दर फैलाकर,
काट कुतरकर एक बराबर
एक बनायेगी बिस्तर ।
फिर जब उसके बच्चे होंगे
उस पर उन्हें सुलायेगी ,
और उन्हीं के साथ लेटकर
लोरी उन्हें सुनायेगी
-हरिवंशराय बच्चन