Wednesday 30 March 2016

प्रकृति




अरे वाह !! यहाँ तो ठहाकों का दौर चल रहा है !! लगता है पुराने दोस्त लम्बे अर्से के बाद मिले हैं !! और बचपन में की गई कोई शरारत याद आ गई है !!

Thursday 17 March 2016

रुद्राक्ष ( Elaeocarpus granitrus ) ... एक ऊर्जा कवच ( An Energy Shield )




रुद्राक्ष ( Elaeocarpus granitrus ) 

 एक ऊर्जा कवच ( An Energy Shield )

              बचपन से घर में रुद्राक्ष को देखकर उसके पेड़ के बारे में तरह-तरह की कल्पना करता था लेकिन प्रत्यक्ष रूप से पेड़ नहीं देखा था. ऋषिकेश में अबकी बार जिक्र किया तो 4-5 जगह रुद्राक्ष के पेड़ों को प्रत्यक्ष देख पाया. रुद्राक्ष अर्थात रूद्र (भोले) की आँखों से गिरी बूँद, जो वृक्ष के रूप में विकसित हुई. भारतीय अध्यात्म में रुद्राक्ष के महत्व में आप सभी किसी न किसी रूप में परिचित हैं.
रुद्राक्ष, अखरोट की तरह फल की गुठली है अध्यात्म में इसका महत्व इस पर उपस्थित स्पष्ट फलकों के आधार पर सुनिश्चित किया गया है. गंगा की तराई में उगने वाले रुद्राक्ष के वृक्ष 3 - 4 साल में फल देने लगते हैं. रुद्राक्ष का प्रयोग जप व धारण करने में किया जाता है. रुद्राक्ष को मुख्य रूप से स्व उर्जा क्षरण या अपव्यय को रोकने व विषम उर्जा के संपर्क में आने पर उस उर्जा से टकराव के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले दोषों जैसे व्यग्रता, उत्तेजना, घबराहट से बचाव के लिए, धारण किया जाता है. रुद्राक्ष व्यक्ति के चारों तरफ अदृश्य उर्जा आवरण (cocoon) बना देता है. जिससे व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से नकारात्मक या विषम उर्जा के संपर्क में नहीं आ पाता..
           प्राचीन काल में सन्यासियों का एक स्थान पर एक से अधिक बार रुकना वर्जित था जिस कारण उनको विभिन्न स्थानों पर अलग- अलग उर्जा क्षेत्रों के संपर्क में आना होता था अत: उन क्षेत्रों के विषम उर्जा से टकराव उत्पन्न होना स्वाभाविक था, इस परिस्थितियों में धारण किया गया रुद्राक्ष उनके चारों तरफ अदृश्य उर्जा आवरण बनाकर उस स्थान की विपरीत उर्जा से दूर रखने में सहायक होता था.इस तरह सन्यासी अपना ध्यान निर्विघ्न केन्द्रित कर पाते थे. व स्थान से बिना व्यग्रता, उत्तेजना, घबराहट आदि दोषों के साम्यता बना पाते थे. आज की तेज रफ़्तार जिंदगी में गृहस्थ को भी कार्यवश् अकसर स्थान परिवर्तन कर अलग-अलग स्थानों पर जाना होता है जिस कारण विषम उर्जा के संपर्क में आने पर व्यग्रता, उत्तेजना, घबराहट जैसे दोष आने की सम्भावना होती है इस स्थिति में रुद्राक्ष का महत्व और भी बढ़ जाता है..
         रुद्राक्ष को विधि सम्मत धारण करने, तामसी भोजन से दूरी व शुद्धता बनाये रखने पर ही उचित फल प्राप्त हो सकता है.. शास्त्रों में 1 से 21 मुखी तक के रुद्राक्षों के बारे में कहा गया है लेकिन प्रमाणिक तौर पर 14 मुखी तक ही रुद्राक्ष पाए जाते हैं.
             कुटिल तरीकों से लाभार्जन की व्यावसायिक मनोवृत्ति रुद्राक्ष व्यापार में भी हावी है. इतना बताना चाहूँगा शुद्ध रुद्राक्ष जल में डूब जाता है, 6 घंटे तक पानी में उबालने पर भी क्षरित नहीं होता . खरीदते समय ध्यान रखियेगा, रुद्राक्ष आंवले के सदृश हो व उस पर घाटियाँ व पर्वत सदृश रचनाएँ एवं फलक स्पष्ट हों. अस्पष्ट व अविकसित फलक वाले व खंडित रुद्राक्ष धारण नहीं करने चाहिए.
आयुर्वेद के अनुसार रात में रुद्राक्ष को जल में भिगोकर सुबह उस जल को पीने से उच्च रक्त चाप से पीड़ित व्यक्तियों को काफी लाभ होता है.
               आजकल तेज रफ़्तार होती जिंदगी में सामान्य रूप से, अनिश्चितता, मन उचाट, मानसिक दबाव व एकाग्रता की कमी से जूझते हैं. इस स्थिति में आसानी से व कम दामों पर मिलने वाला पांच मुखी रुद्राक्ष बहुत ही लाभदायक है .................16.03.15

Sunday 13 March 2016

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - तीन



अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !!

पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - तीन

यह कदम्ब का पेड़ अगर होता यमुना तीरे
    मैं भी इस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे !!

        वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अगर देखा जाय तो दिल्ली में निष्प्राण व बेहाल यमुना को देखकर सुभद्रा कुमारी चौहान जी की ये पंक्तियाँ दुर्भाग्यवश अप्रासंगिक सी जान पड़ती हैं !!
         ये दृश्य गंगा नदी का है लेकिन सोचता हूँ क्या दिल्ली में यमुना इतनी ही निर्मल व स्वच्छ दिख सकेगी !! यमुना की इलाहबाद तक की कुल 1376 किमी. तक की यात्रा के दिल्ली में यात्रा के दौरान वजीराबाद से ओखला बैरेज तक 22 किमी. की दूरी का क्षेत्र का यमुना के कुल प्रदूषण में लगभग 79 % (साभार: इण्डिया वाटर पोर्टल) का हिस्सा है. यदि इस हिस्से को गन्दगी मुक्त करने की जिम्मेदारी, राजनीतिक पूर्वाग्रहों को त्यागकर, राज्यपाल, शहरी विकास, पर्यटन मंत्री रह चुके कुशल व सख्त प्रशासक श्री जगमोहन साहब को सौंप दी जाय तो निश्चित ही निष्प्राण यमुना फिर से प्राणवान हो सकती है (व्यक्तिगत विचार). इस क्रम में विभिन्न राजनीतिक दबावों के बावजूद भी अपने काम को निर्भीकता और कुशलता से अंजाम देने वालों में पूर्व चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन साहब व मेट्रो एम डी. श्रीधरन साहब भी उल्लेखनीय नाम हैं.
        दिलों में अपनी खूबसूरत पहचान खोती जा रही प्राकृतिक व सांस्कृतिक धरोहर, यमुना को पुनर्जीवित करने के निहितार्थ विभिन्न केंद्र सरकारों द्वारा अब तक किये गए प्रयासों में हजारों करोड़ रूपये यमुना में बहाए जा चुके हैं ! लेकिन यमुना की स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है !! इस कारण अब युद्ध स्तर पर प्रयास किये जाने आवश्यकता है. जिससे लन्दन की खूबसूरती बढ़ाती, टेम्स नदी की तरह यमुना भी दिल्ली की खूबसूरती में चार चाँद लगा सके और यमुना के गौरवमयी अतीत की वापसी सुनिश्चित हो सके.
         गंगा और यमुना को यदि परिदृश्य से हटा दिया जाय तो हमारी संस्कृति व कृषि निष्प्राण सी लगती है. सोचता हूँ दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के आगे कुछ भी असंभव नहीं !! अकेले टेम्स ही नहीं दुनिया की कई नदियां ऐसे ही साफ़ की गईं हैं. जर्मनी में राइन, दक्षिण कोरिया में हान और अमरीका में मिलवॉकी नदियों को दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति के बल पर ही पुनर्जीवित किया जा सका है ..


Thursday 10 March 2016

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - दो



अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !!

पर्यावरण पर एक मंथन : भाग - दो

         नदियाँ, संस्कृति व समृद्धि का पर्याय ही नहीं बल्कि प्राकृतिक सौन्दर्य की पूरक भी हैं. लन्दन के बीचों-बीच बहकर शहर की खूबसूरती बढ़ाती टेम्स नदी भी कभी यमुना की तरह मृत होकर बीमारियों की जड़ बन चुकी थी. टेम्स नदी इतनी प्रदूषित हो गयी थी कि 1858 में इससे उठती भयंकर दुर्गन्ध के कारण संसद की कार्यवाही तक रोकनी पड़ी.. इसके बाद वहां की सरकार चेती और ईमानदारी से लगातार 50 वर्षों के सघन प्रयासों के उपरांत टेम्स पुन: अपने खूबसूरत स्वच्छ निर्मल रूप में आ सकी.
       अब मूल विषय पर चर्चा की जाय .. हिमालय के कालिंद शिखर से उद्गम से लेकर इलाहाबाद में गंगा में मिलने तक के यमुना के लगभग 1376 किमी. के सफ़र को पांच क्षेत्रों में बांटा गया है. इस सफ़र के अंतर्गत यमुना बहाव का सबसे छोटा व तृतीय क्षेत्र जो कि मात्र 22 किमी. का है दिल्ली महानगर के अंतर्गत आता है. यही क्षेत्र प्रदूषण की दृष्टि से यमुना के सफर में सबसे भयानक पड़ाव है जहाँ मैले नालों का पानी और कूड़ा-कचरा, कुल प्रदूषण में 79 % का हिस्सेदार बनकर, यमुना को सबसे अधिक विषैला करके उसे मृत घोषित करने को मजबूर कर देता है !! अकेले इस क्षेत्र में 22 गंदे नालों के जरिये प्रतिदिन लगभग 300 करोड़ ली. अपशिष्ट जल यमुना में छोड़ा जाता है. इसी कारण यमुना सफाई के लिए चलाया गया द्वितीय यमुना एक्शन प्लान केवल दिल्ली में यमुना की सफाई पर केन्द्रित किया गया था.
     दिल्ली, यमुना में केवल गन्दगी ही नहीं डाल रही है बल्कि यमुना के तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण करके, यमुना बैंक व शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन अक्षरधाम मन्दिर, मिलेनियम बस डिपो, कॉमनवेल्थ खेल गाँव, इन्दिरा गाँधी इनडोर स्टेडियम सहित हजारों झुग्गी-झोपड़ियाँ भी बन गई है.
     DND पुल के पास यमुना खादर में “ आर्ट ऑफ़ लिविंग “ के सौजन्य से एक ताजा अस्थायी अतिक्रमण आजकल सुर्ख़ियों में है. 11 मार्च से 13 मार्च तक ध्वनि विस्तारक यंत्रों व तेज प्रकाश की पृष्ठभूमि में विश्व प्रेम और शान्ति का सन्देश के देने नाम पर श्री श्री रविशंकर और उनके अनुयायियों द्वारा आयोजित किये जा रहे विश्व सांस्कृतिक महोत्सव, का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री और समापन माननीय राष्ट्रपति करेंगे. इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले अनुमानित 35 लाख लोगों की व्यवस्था हेतु नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ((एनजीटी) के आदेशों का खुलम्म खुल्ला उल्लंघन करते हुए शांत यमुना खादर के एक बड़े भाग की प्राकृतिक भू स्थिति को अर्थ मूवर, जेनरेटर, जे सी वी, ट्रकों के उपयोग से रौंदकर और अशांत करके जैव विविधता को समाप्त कर स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को ध्वस्त कर दिया गया है ! 

         आयोजन के माध्यम से प्रेम और शान्ति के सन्देश के देने के क्रम में न जाने कितने पशु-पक्षी और जीवों के प्राकृतिक आवास समाप्त हो जायेंगे और तेज प्रकाश व ध्वनि विस्तारक यंत्रों द्वारा उच्च आवृत्ति वाली ध्वनियों के उपयोग से किस हद तक क्षेत्र के बचे-खुचे जीव व पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होगा इसका अनुमान आप स्वयं ही लगा सकते हैं. ध्यान देने योग्य यह भी है कि जिन क्षेत्रों में आर्ट ऑफ़ लिविंग संगठन कार्य कर रहा है उनमे एक क्षेत्र “ पर्यावरण स्थिरता “ भी है !!
      हालांकि गठित प्रिंसिपल कमेटी ने NGT को जमा की गयी रिपोर्ट में कहा है कि आर्ट ऑफ़ लिविंग संगठन से कार्यक्रम प्रारंभ होने से पूर्व 120 करोड़ रुपये का क्षतिपूर्ति हर्जाना वसूला जाय और सम्बंधित क्षेत्र में पूर्ववत भौगोलिक पुनर्स्थापना भी सुनिश्चित की जाय ..
        अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत ! प्रदूषण नियंत्रण के लिए नियुक्त कलयुगी “ कृष्ण “.. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी और जिला आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण ने यदि कार्यक्रम के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र देते हुए इतनी जल्दबाजी न दिखाई होती तो ये स्थिति न आती ..
प्रश्न उठता है कि यदि हर्जाना वसूल भी लिया जाय तो क्या हम स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को पुन: उसी रूप में स्थापित कर पायेंगे !! हम इसी लचर इच्छा शक्ति के बल पर दिल्ली में बहती यमुना को टेम्स की तरह खूबसूरत और स्वच्छ बना पायेंगे !! क्या हम इसी लचर इच्छा शक्ति के बल पर यमुना सफाई पर हजारों करोड़ रुपये व्यय करने के बाद भी हम मृत यमुना को टेम्स की तरह पुनर्जीवित कर इस प्राकृतिक धरोहर का गौरवशाली अतीत लौटा पायेंगे !!
विभिन्न यमुना एक्शन प्लान्स, जिनमें 2015 तक यमुना को पूर्णतया प्रदूषण मुक्त करने की कार्य योजना तय की गई थी के बाद यमुना की वर्तमान स्थिति देखकर सोचता हूँ ! जब टेम्स नदी की तरह यमुना की सडांध संसद तक पहुंचकर संसदीय कार्यवाही रोककर स्वयं को स्वच्छ करने को गरियाएगी ! शायद ही हमारे सफेदपोश राजनेताओं की नींद खुलेगी !!
         अंत में सोचता हूँ शायद !! प्रागैतिहासिक काल से निरंतर प्रेम - शांति - समृद्धि का सन्देश देती माँ यमुना को कलयुग में हमने अनियंत्रित " विकास " के कारण उस लायक अब नहीं रखा !! और अब माँ यमुना के स्थान पर हम स्वयं ही विश्व शांति और प्रेम का सन्देश देने इसके तट पर भव्य अतिक्रमण कर डेरा डाल कर पहुँच गए हैं ..

 

आयोजन की तैयारियों में जुटे अर्थ मूवर, जे सी वी,जेनरेटर

आयोजन हेतु समतल कर दिया गया खादर क्षेत्र 
आवाजाही के लिए निर्माणाधीन पन्टून पुल
आयोजन स्थल के पास से बहती मृतप्राय यमुना 
यमुना खादर 
कूड़े-कचरे और गंदे नालों के अपशिष्ट  ढोती यमुना 
DND फ्लाई ओवर पर लगाया गया बोर्ड

Wednesday 2 March 2016

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! .. एक विवेचना .: भाग - एक





 

अथ श्री यमुना कथा ! या व्यथा !! .. 

एक विवेचना .: भाग - एक

          आज DND (  दिल्ली – नोएडा ) फलाई ओवर के ऊपर से गुजर रहा था. मन हुआ यमुना नदी की पृष्ठभूमि में एक तस्वीर क्लिक की जाय ! बाइक रोकी .. पुल के नीचे जल राशि पर नजर डाली तो विश्वास नहीं हुआ कि ये यमुना नदी है ! सोचा ! शायद, बरसात में जमुना खादर के किसी कुंड में इकठ्ठा हुआ पानी है जो कई महीनों तक इकठ्ठा रहने के कारण काला कीचड़ बन गया है !! तभी पुल पर लगा एक सुन्दर सा बोर्ड दिखा जिस पर लिखा था .... 
                                   “ मेरी दिल्ली.. मेरी जमुना .. गन्दगी हटाओ .. जमुना बचाओ “
.....अब पूर्ण विश्वास हो गया कि ये यमुना नदी ही है !!
           यमुना नदी की बात चले और चिर-परिचित, श्री कृष्ण द्वारा कालिय नाग मर्दन प्रसंग का जिक्र न हो तो शायद बात अधूरी ही रह जायेगी !! प्रसंग से तो आप अच्छी तरह विज्ञ हैं लेकिन मैं इस प्रसंग की पूर्व क्षमा सहित वर्तमान सन्दर्भ में विवेचना अवश्य करना चाहूँगा .....
            रमण द्वीप निवासी पन्नग वंशी और कद्रू का पुत्र कालिय द्वापर युग में कोई बाहुबली भू माफिया ही रहा होगा, अतिक्रमण और प्रदूषण फ़ैलाने की प्रवृत्ति के कारण ही प्रचलित प्रसंग में उसे प्रतीक रूप में नाग के रूप में प्रस्तुत किया गया होगा. रमण पर्वत पर पर्यावरण विपरीत कार्यों के चलते जब वहां के राजा गरुड़, कालिय पर क्रोधित हुए तो कालिय नाग अपनी जान बचाने के लिए अपने गैंग के साथ यमुना के किनारे सुनसान खादर क्षेत्र में आकर रहने लगा. लेकिन उसने अपनी मूल प्रवृत्ति को यहाँ आकर भी नहीं त्यागा !!
            कालिय ने अपने गैंग के साथ मिलकर आस पास के लोगों में भय उत्पन्न कर यमुना खादर में अतिक्रमण करके और पर्यावरण विपरीत कृत्यों से जमुना खादर जल कुंडों में इतना अधिक रासायनिक प्रदूषण फैलाया की उन कुंडों का जल अति विषाक्त हो गया जो रासायनिक क्रियाओं के कारण गर्म होकर खौलता रहता था. इस कारण क्षेत्र की जैव विविधता नष्ट होने लगी और जल पीने वाले पक्षी और पशुधन मृत्यु को प्राप्त होने लगा ..
                  उस काल में पशु धन को सबसे अधिक महत्व दिया जाता था. कालिय के कुकृत्यों के कारण जब जन जीवन बहुत अधिक प्रभावित होने लगा तो श्री कृष्ण ने क्रोधित होकर इस बाहुबली भू माफिया कालिय का मर्दन करके स्थानीय लोगों को राहत दिलाई तथा यमुना क्षेत्र के पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त किया ..
                आज के सन्दर्भ में सोचता हूँ कि आज कलयुग में कालिय की वंश वृद्धि बहुत बहुत तेजी से हुई है ! एकाधिक कालिय और उनके गैंग साथियों को पकड़ने के लिए एक नहीं बल्कि कई कृष्ण तैनात किये गए हैं !! और इस कार्य के लिए उनको अच्छा खासा वेतन भी दिया जाता है लेकिन लगता है कलयुगी कृष्णों ने कालिय से मिलीभगत कर गठबंधन बना लिया है !!

               जब खेत की बाड़ ही खेत को खाने लगे तो भला खेत को कौन बचा सकता है !! यमुना किंकर्तव्यविमूढ़ है !! हम कलियुगी पुत्र उसको समय-समय पर धमकाते रहते हैं !! साथ ही सुबह-सुबह ये मन्त्र उच्चारित कर स्वयं को नदियों के प्रति आस्थावान होने का भी खूब " प्रदर्शन " करते हैं .. लेकिन शायद !! ये मन्त्र हम नदियों के प्रति आस्था भाव से नहीं बल्कि उन पर धौंस जमाते हुए आज्ञा भाव में उच्चारित करते हैं !! 

                                       " गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
                                    नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु.. "

                              लेकिन “ पुत्रो कुपुत्रो जायते माता कुमाता न भवति” 
              यमुना आज भी निश्छल भाव में हम छली पुत्रों की प्यास बुझा रही है ! शांत प्रवाहमय है !!
मन में प्रश्न उठा !! कि क्या कलयुग में फिर श्री कृष्ण के अवतरित होने तक यमुना यूँ ही विषाक्त होती रहेगी ? या यमुना को माँ का दर्जा देने वाले हम पुत्रों को माँ यमुना के निरंतर मैले कुचैले होते आंचल को साफ़ रखने में आत्मा की आवाज़ पर आगे बढ़कर योगदान देना होगा ?


DND (  दिल्ली – नोएडा ) फ्लाई ओवर से यमुना का दृश्य


                                                ऋषिकेश के पास गंगा नदी का स्वच्छ जल.. 
जब यमुना उत्तराखंड क्षेत्र में बहती है तो बिलकुल ऐसा ही स्वच्छ जल यमुना नदी का भी दिखाई देता है .. क्या कभी मैदानी क्षेत्र में ये दोनों नदियाँ इतनी ही स्वच्छ दिख पाएंगी

 यमुना जल !! 
जय हो यमुना मैया !!
हम सबने मिलकर क्या हाल कर दिया है यमुना का !!