Sunday 27 September 2015

दुनिया का सबसे उपयोगी वृक्ष : सहजन, World's Most Useful Tree, Drum Stick



दुनिया का सबसे उपयोगी वृक्ष

World's Most Useful Tree 
सहजन (Drum Stick)


             मित्र के कहने पर एक दिन सहजन ( वानस्पतिक नाम Moringa Oleifera) की सब्जी बनाकर खायी तो स्वाद मन को ऐसा भाया कि अक्सर बाइक लेकर चल पड़ता था सहजन की खोज !! लेकिन कई दिनों की पुरानी सहजन ही मिल पाती थी उपाय सूझा ....सहजन की एक टहनी लगाकर सामने पार्क में लगा दी. कई साल हो गए तब से सहजन का पेड़ मुझे ही नहीं सभी पड़ोसियों को खूब सहजन मुहैय्या करवा रहा है , सहजन का बाजार भाव 200 रुपये किलो तक पहुँच जाता है !! अर्थात एक फली की कीमत 10 रुपये !!
                                   अब आप कहेंगे आखिर इसमें ऐसा विशेष क्या है....
              सच कहूँ तो जब मैंने सहजन लगाया था तब मुझे ये जानकारी नहीं थी कि सहजन दुनिया का सबसे उपयोगी पौधा है.. ये मैं या कोई वैद हकीम नहीं कह रहा यह विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रमाणिक तौर पर कहा है.. इस पौधे का हर भाग जैसे फल, फूल पत्ती, छाल और जड़ सभी कुछ हमारे लिए भोज्य रूप में अचूक औषधीय गुणों से संपन्न व उपयोगी है. सहजन, प्रयोग करने वाले के लिए ही उपयोगी नहीं बल्कि उस भूमि के लिए भी बहुत ही उपयोगी है जिसमे ये उगा होता है.. भूमि से भी बहुत कम पानी का अवशोषण करता है.
                  इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि मापी गई है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। इतने गुणों के नाते सहजन चमत्कार से कम नहीं है।
               सहजन, फास्फोरस युक्त होने के कारण मस्तिष्क को मजबूत बनाता है और बच्चों में याद करने की क्षमता बढ़ाताहै। ये पौरुषवर्धक होने के साथ-साथ चेहरे पर बुढ़ापे के लक्षणों को दूर रखने में भी कारगर है..
             चर्म रोग,दमा, मौसमी बुखार, पित्त व किडनी की पथरी, डायबिटीज, शारीरिक दर्द, गठिया, सायटिका, वायु दोष, कैन्सर, रक्तचाप,आइरन की अधिकता के कारण गर्भवती महिलाओं द्वारा सेवन आदि में प्रभाव कारी है।
                    इसके विभिन्न भागों को सब्जी,रायते, सांभर में, अरहर की दाल में, चटनी, सूप, काढ़े, अचार, चटनी के रूप में प्रयोग किया जाता है. यहाँ तक की सूखने पर फलियों के बीजों को भी सुखाकर और पीसकर, प्रयोग किए जाने वाले भूमिगत जल में मिलाने से उसकी सान्ध्रता भी बढती है और बैक्टीरिया रहित भी हो जाता है ... सहजन के पौष्टिक व गुणकारी होने का स्पष्ट प्रमाण, कुपोषण के शिकार देशों मैं शीघ्रता से कुपोषण समाप्त करने हेतु, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सहजन उपयोग करने की सलाह भी है .. ..
            यह तराई और कुछ गर्म क्षेत्रों में उग सकता है. हर वर्ष 2 मी. की ऊँचाई पर काट देने के बाद पुन: नयी शाखाएं निकल कर फल देने लगती हैं..
             यदि संक्षिप्त में कहूँ तो रासायनिक खाद और कीटाणुनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के उपरांत प्राप्त होने वाली सब्जियों व डिब्बा बंद पौष्टिक पाउडरों की अपेक्षा प्राकृतिक परिस्थितियों में आसानी से उगने वाला सहजन हमारे भोजन में किसी न किसी रूप में अवश्य शामिल होना चाहिए. सहजन एक ऐसा गुणकारी मल्टी विटामिन मल्टी मिनरल एंटी आक्सिडेंट कैप्सूल है जिसे कोई भी दवा कम्पनी नहीं बना सकती।
             इतना अवश्य ध्यान रखिएगा कि सहजन की तासीर गर्म होती है। अत: व्यक्तिश: तासीर प्रतिकूलता की स्थिति में, आवश्यक अवयव मिलाकर ही सहजन प्रयोग किया जाना चाहिए।
          सहजन की कलम का रोपण किया जाता है किसी भी स्वस्थ व लगभग दो इंच व्यास ( मोटाई अधिक होना व्यवधान नहीं है) वाली टहनी के दोनों सिरे काटकर एक सिरा जमीन में गाड़ दीजिये , जमीन के ऊपर वाले सिरे पर गोबर लगा कर धक् दीजियेगा .. पानी देते रहिएगा .. कुछ दिनों बाद कोंपल फूटने लगेंगी ..
           हाँ, अंत में एक सलाह अवश्य देना चाहूँगा, बेशक आप के यहाँ की जलवायु, सहजन के माफिक न हो फिर भी इसकी टहनी का रोपण अवश्य कीजिएगा। यदि फल ना भी मिले तो पत्तियाँ, छाल और जड़ प्राप्त होने की कुछ संभावना अवश्य बन सकती है !!


Saturday 26 September 2015

चीड़ एक बहुउपयोगी वृक्ष : नई टिहरी




चीड़ एक बहुउपयोगी वृक्ष : नई टिहरी

         जब नई टिहरी पहुंचा तो स्वयं को चीड़ के जंगल के मध्य पाकर मुझे चीड़ के जंगल से घिरे पौड़ी में, तत्कालीन सरकारी आवास में बीता अपना बचपन याद आ गया !! तब आज की तरह आधुनिक मनोरंजन के साधन उपलब्ध नही थे, प्रकृति के आँगन में प्रकृति प्रदत्त सामग्री को मूल रूप में ही बाल क्रीडाओं की सामग्री बनाकर उन्मुक्त व अपार आनंद की अनुभूति होती थी.
         चीड की मोटी छाल को घिसकर “ घुर्रा “ (धागा डालकर दोनों हाथों की उँगलियों से घुमाया जाने वाला खिलौना) बनाते थे, गर्मियों में बाल टोली हवाखोरी करती सड़क के किनारे पड़े चीड़ के बीज उठा-उठाकर खाने में आनंद लेती थी , सबसे ज्यादा आनंद सूखी चीड़ की पत्तियों को बोरे में भरकर ऊँचाई में ले जाकर फिसलने में आता था और ये साहसिक खेल भी माना जाता था क्योंकि अधिक ऊँचाई से फिसलने की होड़ में संतुलन बिगड़ने से हाथ-पैर की हड्डी अक्सर टूट जाती थी.
चीड़ की मोटी बाहरी छाल में कठफोड़वे द्वारा भोजन की तलाश में अनवरत चोंच मारने से उत्पन्न होने वाली कट-कट की ध्वनि, सुनसान में अलग तरह का मधुर संगीत उत्पन्न करती थी .. ये तो रही बचपन की बात, अब विषय पर आता हूँ..
        सामान्यत: 3- 80 मी. तक ऊँचे और 100 से 100० वर्ष तक जीवित रहने वाले ( नेवदा, अमेरिका में 4600 वर्ष पुराना चीड का जीवित वृक्ष है ) चीड के वृक्ष को भूमि में अम्लता बढ़ाने और भूमि को खुष्क करने का दोषी मानकर, पर्यावरणविद वक्र दृष्टि से देखते हैं लेकिन इस वृक्ष की उपयोगिता को कम करके आंकना भी उचित नहीं, हालाँकि खुले में रखने पर चीड़ की लकड़ी की उम्र 2 वर्ष ही होती है लेकिन दुनिया में प्रयोग की जाने वाली उपयोगी लकड़ी में 50 % हिस्सा चीड़ का ही है !
इमारती और फर्नीचर के रूप में प्रयोग की जाने वाली चीड़ की नर्म लकड़ी अब पार्कों और रेस्टोरेंट्स को प्राकृतिक छटा देने में प्रयोग की जाने लगी है.
       चीड़ से प्राप्त होने वाले रेजिन की उपयोगिता से कौन वाकिफ नहीं !! इसकी मोटी बार्क (छाल) के अन्दर वाली पतली सफ़ेद छाल ( बचपन में हम इसे स्वाद के कारण खाया करते थे) में विटामिन A और C प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और कई देशों चीड़ की पत्तियों से चाय बनाने से भी विटामिन A और C प्राप्त किया जाता है.इसकी नुकीली पत्तियों के रेशे से टोकरियाँ व बैग आदि बनाये जाते हैं ..साथ ही इन पत्तियों से प्राप्त होने वाला तेल औषधि में प्रयोग किया जाता है.
       चीड़ की पत्तियों से टकराकर बहने वाली वायु कीटाणुरहित होती है, इसी कारण पुराने समय में, अन्य लोगों को संक्रमण से बचाने व स्वच्छ वायु प्राप्त करने हेतु तपेदिक (Tuberculosis) के रोगी को, चीड के जंगल में रहने की व्यवस्था की जाती थी.
        भौगौलिक बनावट के कारण उत्तराखंड में चीड़ काफी पाया जाता है अत: राज्य सरकार को उच्च तकनीक को प्राप्त कर चीड़ आधारित उद्योग विकसित करने चाहिए इससे स्थानीय लोगों को स्वरोजगार मिलेगा साथ ही राज्य का चीड़ से से जुड़ा अतिरिक्त राजस्व भी बढ़ेगा ..

Wednesday 23 September 2015

" अल्मोड़ा " ; एक उपयोगी घास




" अल्मोड़ा " ; एक उपयोगी घास


... खुदेंदु अल्मोड़ा ...
जिला कु नो नि सम्झ्याँ
घास कु नो अल्मोड़ा छ
पाखों बिट्टो मिळ्दु खूब
   स्वाद माँ खट्टू हौंदु छ..

चटणी खूब स्वाद बणदि
विटामिन “सी” भरपूर छ
आयरन भी खूब मिळ्दु
    ये सि बचपना कि प्रीत छ...

रूडियों मा गदगदा पत्तों की
चटणी कु अलग आनंद छ
ह्युंद किड्या सि हवे जांदु
    पाखा बिटटों लाल रंगणुं छ...

नौना बोळ्युं नि माणदा
कंडाळी पुराणु इलाज छ
कंडाळी का झमणाट कु
     अल्मोड़ा पेटेंट इलाज छ....

कंडाळी का साग तैं
अल्मोड़ा सुस्वादु बणोंदु छ
नया ज़माना माँ बैठक कि
    अल्मोड़ा शान अब बढोणु छ ...

उत्तराखंडी अब परदेशी ह्वेन
नौना बाळा कम ही जांणदन
पाखा बिटटो खड़युँ अल्मोड़ा
   सुनसान बाटों देखि खुदेणु छ !!

..विजय जयाड़ा 21.04.15
                  ये उत्तराखंड में ऊँचाइयों पर पायी जाने वाली, विटामिन C व आयरन से भरपूर सदाबहार अल्मोड़ा घास है. खाद्य के रूप में इसे क्षुधावर्धक चटनी बनाने में और कंडाली (बिच्छु घास) के साग में डालकर खाया जाता है. कंडाली के पत्तों के स्पर्श से त्वचा में उत्पन्न पीड़ादायक झनझनाहट को उस स्थान पर अल्मोड़ा के पत्तों को रगड़ने से समाप्त किया जा सकता है. मछर के काटने पर भी ऐसा ही किये जाने से जलन ख़त्म हो जाती है.. अब इस घास का उपयोग सजावट के लिए भी किया जाता है..

Sunday 20 September 2015

बुद्धिमान कौवा !!




बुद्धिमान कौवा !!


               बचपन में बुद्धिमान कौवे द्वारा घड़े में कंकड़ डालकर प्यास बुझाने की प्रेरक कहानी सुनी थी लेकिन साथ ही चालाक लोमड़ी द्वारा कौवे को मूर्ख बनाकर रोटी झपटने को कहानी भी पढ़ी थी !!

             कौवे का अनुमानित जीवन काल 100 वर्ष माना गया है !!! शायद इसी कारण कौवे को पूर्वजों के प्रतिनिधि होने का सम्मान भी दिया जाता है !!
             आज गमलों में लबालब पानी डालने के बाद, यह सोचकर सुस्ताने लगा कि गमलों की मिटटी धीरे-धीरे पानी सोख लेगी तो एक बार अंत में फिर पानी डालकर चल दूंगा. इससे पहले कौवों को रोटी के टुकड़े और मिटटी के कटोरे में पानी डाल चुका था. आज धर्मपत्नी ने कुछ मोटी रोटियाँ इस उद्देश्य से बनाकर दी थी की सभी कौवों का काम चल जाएगा. तब तो कौवे रोटी के टुकड़ों को कब्जाकर नीम की शाख पर बैठ गए ! अब देखता हूँ कि वो मिटटी के बर्तन में रखे पानी में में उन रोटियों के टुकड़ों को भिगा-भिगा कर खा रहे हैं !! कौवों की बुद्धिमानी पर आश्चर्य हुआ !!
            भीषण गर्मी के कारण गला सूखने से बेहाल, पक्षी भी सूखी रोटी निगल सकने में सहज नहीं हैं !!
प्रकृति, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से स्वयं में सभी जीवों की सहज व स्वाभाविक शिक्षक है। यदि जज्बा हो तो विपरीत देश-काल-परिस्थितियां भी जीने का हुनर सिखाने में सक्षम हैं !!
        कौवों की गतिविधियों की कुछ तस्वीरें भी प्रस्तुत हैं...