Tuesday, 8 December 2015

कालू



कालू

                 यह तस्वीर लगभग दो वर्ष पुरानी है तस्वीर में ,मंदिर दर्शन की समयावधि में, वर्षा के बावजूद भी ,निरंतर,मेरे साथ रहा " कालू " है.साथियों, इसे सामान्य, कालू समझने की भूल मत कीजियेगा . इसकी विशेषता यह है कि ये जिस दर्शनार्थी के साथ सड़क से नीचे मंदिर तक जाता है उसी के साथ वापस पुन: चढ़ाई चढ़कर वापस सड़क तक आता है.और विदा करता है ! जिन साथियों ने मंदिर दर्शन किये हों उनको अंदाज़ होगा कि चढ़ाई कितनी खड़ी है !!
        इस दौरान चाहे कितनी भी भीड़ हो "कालू " यदि आपके साथ हो लिया तो हो लिया ... जब आप इस स्थान पर जाए तो " कालू " से अवश्य मिलिएगा
               एक जानवर के मन में अजनबी श्रधालुओं के प्रति इतनी आत्मीयता !!!.आश्चर्य हुआ .!!
 

Thursday, 5 November 2015

भीमल (Grewia optiva) ; एक बहुउपयोगी वृक्ष



 

भीमल (Grewia optiva) ; एक बहुउपयोगी वृक्ष

                    कुछ साथियों को पानी में रखी गई इन टहनियों के बारे में अवश्य जानकारी होगी। यदि नही है तो ये " भीमल " की टहनियाँ हैं. कुछ दिन पानी में इसलिए भीगने के लिए रख दी हैं जिससे आसानी से इसका रेशा  ( स्योल)  निकल जाएगा . इस रेशे से रस्सियाँ व जुड़ा बनाया जाता है . भीमल की बारीक टहनियों से टोकरियां भी बनाई जाती हैं और पत्तियाँ, जानवरों के लिए सर्दियों में लाभदायक भोजन है। भीमल के बीज खाद्य प्रसंस्करण में भी प्रयोग किए जाते हैं।
           हरी टहनियों की छाल को निकालकर उसे कूटकर पानी में भिगाकर उससे सिर धोया जाता है जो शैम्पू जैसा घना झाग देता है। आजकल शिकाकाई मिश्रण के साथ कम्पनियाँ इसका उपयोग कर रही हैं। इससे कपडे भी धोए जाते हैं...
           सूखी लकड़ी जो बच जाती है जिसे " कैडे " कहा जाता है, ये त्वरित आग सुलगाने के काम में प्रयोग किये जाते हैं। पुराने समय में रात के अंधेरों में राह चलने के काम में भी लाये जाते थे।
साथियों, है न प्राकृतिक रूप से फायदेमंद " भीमल " का पेड़ ?
            ओहो !! एक बात तो भूल ही गया ! कभी, गुरू जी की पसंदीदा "ज्ञानबोधनी" भी होती थी भीमल की " सुटकी " .. चटाख - चटाख !!
हम जहां बहु राष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों में प्राकृतिक सामग्री के समावेश को पढकर उन्हें खरीदने को लालायित रहते हैं वहीँ उत्तराखंड में बहुत सी उपयोगी सामग्री प्रकृति में निशुल्क व आसानी से उपलब्ध हैं और इनका उपयोग करने में हम स्वयं को पिछड़ा हुआ समझते हैं !!
           भीमल वृक्ष लगाकर जहाँ एक ओर दुग्ध उत्पादन बढ़ाया जा सकता है वही इससे प्राप्त रेशे से रेशा उद्योग आधारित कुटीर उद्योग लगा कर व सरकार द्वारा उत्पाद विपणन सुनिश्चित कर स्थानीय अर्थ व्यवस्था को मजबूत कर प्लायन का दंश झेल रहे उत्तराखण्ड में आशा की किरण लायी जा सकती है।


Sunday, 27 September 2015

दुनिया का सबसे उपयोगी वृक्ष : सहजन, World's Most Useful Tree, Drum Stick



दुनिया का सबसे उपयोगी वृक्ष

World's Most Useful Tree 
सहजन (Drum Stick)


             मित्र के कहने पर एक दिन सहजन ( वानस्पतिक नाम Moringa Oleifera) की सब्जी बनाकर खायी तो स्वाद मन को ऐसा भाया कि अक्सर बाइक लेकर चल पड़ता था सहजन की खोज !! लेकिन कई दिनों की पुरानी सहजन ही मिल पाती थी उपाय सूझा ....सहजन की एक टहनी लगाकर सामने पार्क में लगा दी. कई साल हो गए तब से सहजन का पेड़ मुझे ही नहीं सभी पड़ोसियों को खूब सहजन मुहैय्या करवा रहा है , सहजन का बाजार भाव 200 रुपये किलो तक पहुँच जाता है !! अर्थात एक फली की कीमत 10 रुपये !!
                                   अब आप कहेंगे आखिर इसमें ऐसा विशेष क्या है....
              सच कहूँ तो जब मैंने सहजन लगाया था तब मुझे ये जानकारी नहीं थी कि सहजन दुनिया का सबसे उपयोगी पौधा है.. ये मैं या कोई वैद हकीम नहीं कह रहा यह विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रमाणिक तौर पर कहा है.. इस पौधे का हर भाग जैसे फल, फूल पत्ती, छाल और जड़ सभी कुछ हमारे लिए भोज्य रूप में अचूक औषधीय गुणों से संपन्न व उपयोगी है. सहजन, प्रयोग करने वाले के लिए ही उपयोगी नहीं बल्कि उस भूमि के लिए भी बहुत ही उपयोगी है जिसमे ये उगा होता है.. भूमि से भी बहुत कम पानी का अवशोषण करता है.
                  इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि मापी गई है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। इतने गुणों के नाते सहजन चमत्कार से कम नहीं है।
               सहजन, फास्फोरस युक्त होने के कारण मस्तिष्क को मजबूत बनाता है और बच्चों में याद करने की क्षमता बढ़ाताहै। ये पौरुषवर्धक होने के साथ-साथ चेहरे पर बुढ़ापे के लक्षणों को दूर रखने में भी कारगर है..
             चर्म रोग,दमा, मौसमी बुखार, पित्त व किडनी की पथरी, डायबिटीज, शारीरिक दर्द, गठिया, सायटिका, वायु दोष, कैन्सर, रक्तचाप,आइरन की अधिकता के कारण गर्भवती महिलाओं द्वारा सेवन आदि में प्रभाव कारी है।
                    इसके विभिन्न भागों को सब्जी,रायते, सांभर में, अरहर की दाल में, चटनी, सूप, काढ़े, अचार, चटनी के रूप में प्रयोग किया जाता है. यहाँ तक की सूखने पर फलियों के बीजों को भी सुखाकर और पीसकर, प्रयोग किए जाने वाले भूमिगत जल में मिलाने से उसकी सान्ध्रता भी बढती है और बैक्टीरिया रहित भी हो जाता है ... सहजन के पौष्टिक व गुणकारी होने का स्पष्ट प्रमाण, कुपोषण के शिकार देशों मैं शीघ्रता से कुपोषण समाप्त करने हेतु, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सहजन उपयोग करने की सलाह भी है .. ..
            यह तराई और कुछ गर्म क्षेत्रों में उग सकता है. हर वर्ष 2 मी. की ऊँचाई पर काट देने के बाद पुन: नयी शाखाएं निकल कर फल देने लगती हैं..
             यदि संक्षिप्त में कहूँ तो रासायनिक खाद और कीटाणुनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के उपरांत प्राप्त होने वाली सब्जियों व डिब्बा बंद पौष्टिक पाउडरों की अपेक्षा प्राकृतिक परिस्थितियों में आसानी से उगने वाला सहजन हमारे भोजन में किसी न किसी रूप में अवश्य शामिल होना चाहिए. सहजन एक ऐसा गुणकारी मल्टी विटामिन मल्टी मिनरल एंटी आक्सिडेंट कैप्सूल है जिसे कोई भी दवा कम्पनी नहीं बना सकती।
             इतना अवश्य ध्यान रखिएगा कि सहजन की तासीर गर्म होती है। अत: व्यक्तिश: तासीर प्रतिकूलता की स्थिति में, आवश्यक अवयव मिलाकर ही सहजन प्रयोग किया जाना चाहिए।
          सहजन की कलम का रोपण किया जाता है किसी भी स्वस्थ व लगभग दो इंच व्यास ( मोटाई अधिक होना व्यवधान नहीं है) वाली टहनी के दोनों सिरे काटकर एक सिरा जमीन में गाड़ दीजिये , जमीन के ऊपर वाले सिरे पर गोबर लगा कर धक् दीजियेगा .. पानी देते रहिएगा .. कुछ दिनों बाद कोंपल फूटने लगेंगी ..
           हाँ, अंत में एक सलाह अवश्य देना चाहूँगा, बेशक आप के यहाँ की जलवायु, सहजन के माफिक न हो फिर भी इसकी टहनी का रोपण अवश्य कीजिएगा। यदि फल ना भी मिले तो पत्तियाँ, छाल और जड़ प्राप्त होने की कुछ संभावना अवश्य बन सकती है !!


Saturday, 26 September 2015

चीड़ एक बहुउपयोगी वृक्ष : नई टिहरी




चीड़ एक बहुउपयोगी वृक्ष : नई टिहरी

         जब नई टिहरी पहुंचा तो स्वयं को चीड़ के जंगल के मध्य पाकर मुझे चीड़ के जंगल से घिरे पौड़ी में, तत्कालीन सरकारी आवास में बीता अपना बचपन याद आ गया !! तब आज की तरह आधुनिक मनोरंजन के साधन उपलब्ध नही थे, प्रकृति के आँगन में प्रकृति प्रदत्त सामग्री को मूल रूप में ही बाल क्रीडाओं की सामग्री बनाकर उन्मुक्त व अपार आनंद की अनुभूति होती थी.
         चीड की मोटी छाल को घिसकर “ घुर्रा “ (धागा डालकर दोनों हाथों की उँगलियों से घुमाया जाने वाला खिलौना) बनाते थे, गर्मियों में बाल टोली हवाखोरी करती सड़क के किनारे पड़े चीड़ के बीज उठा-उठाकर खाने में आनंद लेती थी , सबसे ज्यादा आनंद सूखी चीड़ की पत्तियों को बोरे में भरकर ऊँचाई में ले जाकर फिसलने में आता था और ये साहसिक खेल भी माना जाता था क्योंकि अधिक ऊँचाई से फिसलने की होड़ में संतुलन बिगड़ने से हाथ-पैर की हड्डी अक्सर टूट जाती थी.
चीड़ की मोटी बाहरी छाल में कठफोड़वे द्वारा भोजन की तलाश में अनवरत चोंच मारने से उत्पन्न होने वाली कट-कट की ध्वनि, सुनसान में अलग तरह का मधुर संगीत उत्पन्न करती थी .. ये तो रही बचपन की बात, अब विषय पर आता हूँ..
        सामान्यत: 3- 80 मी. तक ऊँचे और 100 से 100० वर्ष तक जीवित रहने वाले ( नेवदा, अमेरिका में 4600 वर्ष पुराना चीड का जीवित वृक्ष है ) चीड के वृक्ष को भूमि में अम्लता बढ़ाने और भूमि को खुष्क करने का दोषी मानकर, पर्यावरणविद वक्र दृष्टि से देखते हैं लेकिन इस वृक्ष की उपयोगिता को कम करके आंकना भी उचित नहीं, हालाँकि खुले में रखने पर चीड़ की लकड़ी की उम्र 2 वर्ष ही होती है लेकिन दुनिया में प्रयोग की जाने वाली उपयोगी लकड़ी में 50 % हिस्सा चीड़ का ही है !
इमारती और फर्नीचर के रूप में प्रयोग की जाने वाली चीड़ की नर्म लकड़ी अब पार्कों और रेस्टोरेंट्स को प्राकृतिक छटा देने में प्रयोग की जाने लगी है.
       चीड़ से प्राप्त होने वाले रेजिन की उपयोगिता से कौन वाकिफ नहीं !! इसकी मोटी बार्क (छाल) के अन्दर वाली पतली सफ़ेद छाल ( बचपन में हम इसे स्वाद के कारण खाया करते थे) में विटामिन A और C प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और कई देशों चीड़ की पत्तियों से चाय बनाने से भी विटामिन A और C प्राप्त किया जाता है.इसकी नुकीली पत्तियों के रेशे से टोकरियाँ व बैग आदि बनाये जाते हैं ..साथ ही इन पत्तियों से प्राप्त होने वाला तेल औषधि में प्रयोग किया जाता है.
       चीड़ की पत्तियों से टकराकर बहने वाली वायु कीटाणुरहित होती है, इसी कारण पुराने समय में, अन्य लोगों को संक्रमण से बचाने व स्वच्छ वायु प्राप्त करने हेतु तपेदिक (Tuberculosis) के रोगी को, चीड के जंगल में रहने की व्यवस्था की जाती थी.
        भौगौलिक बनावट के कारण उत्तराखंड में चीड़ काफी पाया जाता है अत: राज्य सरकार को उच्च तकनीक को प्राप्त कर चीड़ आधारित उद्योग विकसित करने चाहिए इससे स्थानीय लोगों को स्वरोजगार मिलेगा साथ ही राज्य का चीड़ से से जुड़ा अतिरिक्त राजस्व भी बढ़ेगा ..

Wednesday, 23 September 2015

" अल्मोड़ा " ; एक उपयोगी घास




" अल्मोड़ा " ; एक उपयोगी घास


... खुदेंदु अल्मोड़ा ...
जिला कु नो नि सम्झ्याँ
घास कु नो अल्मोड़ा छ
पाखों बिट्टो मिळ्दु खूब
   स्वाद माँ खट्टू हौंदु छ..

चटणी खूब स्वाद बणदि
विटामिन “सी” भरपूर छ
आयरन भी खूब मिळ्दु
    ये सि बचपना कि प्रीत छ...

रूडियों मा गदगदा पत्तों की
चटणी कु अलग आनंद छ
ह्युंद किड्या सि हवे जांदु
    पाखा बिटटों लाल रंगणुं छ...

नौना बोळ्युं नि माणदा
कंडाळी पुराणु इलाज छ
कंडाळी का झमणाट कु
     अल्मोड़ा पेटेंट इलाज छ....

कंडाळी का साग तैं
अल्मोड़ा सुस्वादु बणोंदु छ
नया ज़माना माँ बैठक कि
    अल्मोड़ा शान अब बढोणु छ ...

उत्तराखंडी अब परदेशी ह्वेन
नौना बाळा कम ही जांणदन
पाखा बिटटो खड़युँ अल्मोड़ा
   सुनसान बाटों देखि खुदेणु छ !!

..विजय जयाड़ा 21.04.15
                  ये उत्तराखंड में ऊँचाइयों पर पायी जाने वाली, विटामिन C व आयरन से भरपूर सदाबहार अल्मोड़ा घास है. खाद्य के रूप में इसे क्षुधावर्धक चटनी बनाने में और कंडाली (बिच्छु घास) के साग में डालकर खाया जाता है. कंडाली के पत्तों के स्पर्श से त्वचा में उत्पन्न पीड़ादायक झनझनाहट को उस स्थान पर अल्मोड़ा के पत्तों को रगड़ने से समाप्त किया जा सकता है. मछर के काटने पर भी ऐसा ही किये जाने से जलन ख़त्म हो जाती है.. अब इस घास का उपयोग सजावट के लिए भी किया जाता है..

Sunday, 20 September 2015

बुद्धिमान कौवा !!




बुद्धिमान कौवा !!


               बचपन में बुद्धिमान कौवे द्वारा घड़े में कंकड़ डालकर प्यास बुझाने की प्रेरक कहानी सुनी थी लेकिन साथ ही चालाक लोमड़ी द्वारा कौवे को मूर्ख बनाकर रोटी झपटने को कहानी भी पढ़ी थी !!

             कौवे का अनुमानित जीवन काल 100 वर्ष माना गया है !!! शायद इसी कारण कौवे को पूर्वजों के प्रतिनिधि होने का सम्मान भी दिया जाता है !!
             आज गमलों में लबालब पानी डालने के बाद, यह सोचकर सुस्ताने लगा कि गमलों की मिटटी धीरे-धीरे पानी सोख लेगी तो एक बार अंत में फिर पानी डालकर चल दूंगा. इससे पहले कौवों को रोटी के टुकड़े और मिटटी के कटोरे में पानी डाल चुका था. आज धर्मपत्नी ने कुछ मोटी रोटियाँ इस उद्देश्य से बनाकर दी थी की सभी कौवों का काम चल जाएगा. तब तो कौवे रोटी के टुकड़ों को कब्जाकर नीम की शाख पर बैठ गए ! अब देखता हूँ कि वो मिटटी के बर्तन में रखे पानी में में उन रोटियों के टुकड़ों को भिगा-भिगा कर खा रहे हैं !! कौवों की बुद्धिमानी पर आश्चर्य हुआ !!
            भीषण गर्मी के कारण गला सूखने से बेहाल, पक्षी भी सूखी रोटी निगल सकने में सहज नहीं हैं !!
प्रकृति, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से स्वयं में सभी जीवों की सहज व स्वाभाविक शिक्षक है। यदि जज्बा हो तो विपरीत देश-काल-परिस्थितियां भी जीने का हुनर सिखाने में सक्षम हैं !!
        कौवों की गतिविधियों की कुछ तस्वीरें भी प्रस्तुत हैं...

Friday, 28 August 2015

सच है कि ....



    सच है कि .....
सजदों और इबादत से मिलता खुदा है,
   मगर ! बेनूर को ..

जो नूरानी कर दे, बसता उसमें भी खुदा है !

 
... विजय जयाड़ा
 
 

Thursday, 27 August 2015

वृक्षारोपण सार्थकता और रक्षाबंधन

वृक्षारोपण सार्थकताऔर रक्षाबंधन

बिन मांगे ही जो लुटाते हैं,ध्यान उनका भी धरें,
वो जीते हैं स्वाभिमान से, किसी से मांगते नहीं !!.
                                                                     .. विजय जयाड़ा
        आज सुबह विद्यालय में प्रार्थना प्रारंभ हुई तो टहलते हुए हाल ही में लगाये गए पांच अर्जुन के पेड़ों का हाल-चाल जानने उनके पास पहुँच गया. आज भी चार पेड़ सुरक्षित थे !! प्रसन्नता हुई !! लेकिन जैसे ही पांचवे पेड़ की तरफ गया, मन ख़राब हो गया !! बेचारा मरणासन्न पड़ा मानों दर्द से कराह रहा था !! किसी उत्पाती ने उसके मूल तने को ही मोड़कर तोड़ने की कोशिश की थी !!
         तुरंत अपनी कक्षा की उत्साही बच्चियों, 
ललिता व गुनगुन से प्राथमिक चिकित्सा हेतु, पानी, दो अलग-अलग चौडाई की टेप मंगवाई, खाद मिली मिटटी का स्नेह लेप लगाकर एक लकड़ी के टुकड़े के सहारे तने को मूल अवस्था तक सीधा किया और अच्छी तरह से टेप लगा दिया.
         हमने कोई बहुत बड़ा काम नही किया !! लेकिन पेड़ पर रक्षा सूत्र बांधकर बहुत सुकून मिला !! साथ ही इन बच्चियों में प्रत्यक्ष रूप से वृक्ष मित्र होने के संस्कार भी संप्रेषित कर सका..
         रक्षाबंधन के दिन पेड़-पौधों पर भी रक्षा सूत्र बांधकर, उनकी दीर्घायु होने की कामना करके की स्वस्थ परंपरा,पेड़-पौधों की सुरक्षा व स्वच्छ पर्यावरण के सम्बन्ध में एक सार्थक पहल अवश्य हो सकती है..         सोचता हूँ वृक्षारोपण को एक पखवाड़े व कुछ तस्वीरें क्लिक करने तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए. यदि रोपित वृक्षों के वयस्क हो जाने तक उनकी सुरक्षा और देखभाल सुनिश्चित की जाय, तो ही वृक्षारोपण सार्थक सिद्ध हो सकता है. इससे एक ओर जहाँ वन क्षेत्र बढेगा वहीँ बागवानी विभाग के माध्यम से वृक्षों की पौध तैयार करने पर किये जाने वाले सार्वजनिक धन की बर्बादी भी रुक सकती है..

Wednesday, 19 August 2015

नन्हा संसार

 

नन्हा संसार

        
          आज वर्ल्ड फोटोग्राफी डे है.. इस अवसर पर इस दुनिया के सतरंगी दुनिया को अपने कैमरे में सदैव के लिए समेट लेने वाले परिश्रमी व अपने पेशे के साथ न्याय करने वाले सम्मानित छायाकारों को हार्दिक बधाइयां..
कहा जाता है कि एक सम्पूर्ण तस्वीर एक पूरा उपन्यास बयान करती है !!
         हालाँकि मैं पेशेवर फोटोग्राफर नहीं !! लेकिन फिर भी प्रकृति को करीब से देखने की जिज्ञासा के कारण मैं भी कैमरे पर उलटे-सीधे हाथ आजमा लेता हूँ.
          मोबाइल से मेरे द्वारा ली गई ये तस्वीर किसी नेता अभिनेता भ्रष्टाचारी धर्मगुरु उग्रवादी उत्तेजक फूहड़ता लिए या फिरका परस्त बयानबाजी करने वालों की तस्वीर की तरह अपनी तरफ आकर्षित करने वाली बेशक न सही !
           ये भी संभव है !! कि छायांकन मानदंडों पर भी ये तस्वीर खरी न उतरे !! 

                          लेकिन मुझे लगता है ये तस्वीर बहुत कुछ बयान कर रही है !!


 

Wednesday, 12 August 2015

अर्जुन ( Terminalia arjuna ) : एक बहुउपयोगी औषधीय वृक्ष

 

अर्जुन ( Terminalia arjuna )  

एक बहुउपयोगी औषधीय वृक्ष ( A Multi Useful Medicinal Tree )

            वृक्षारोपण जैसे पुण्य कार्य के लिए उपयुक्त, श्रावण मास में सभी जगह वृक्षारोपण उत्साह व जोर-शोर से चल रहा है. जब उत्तराखंड में था तो विद्यालय के अतिरिक्त स्थानीय क्षेत्र में भी वृक्षारोपण किया जाता था लेकिन दिल्ली में मजबूरी है ! विद्यालय परिसर में ही वृक्षारोपण कर संतोष कर लेना होता है.हालांकि हमारे विद्यालय में क्षेत्रफल के अनुसार, विद्यालय परिवार के सम्मिलित प्रयासों से पर्याप्त उपयोगी वृक्ष हैं जो अब वयस्क हो चुके हैं लेकिन फिर भी हमने स्वनाम धन्य अर्जुन के खास औषधीय गुणों के चलते, मन बनाया और पांच अर्जुन के पेड़ लगाने का स्थान खोज ही लिया।
             लगभग 15 प्रजातियों में व प्राय: हर क्षेत्र में उगने वाला मोटी छाल लिए, 60 से 80 फीट तक ऊँचा बढ़ने वाला,  अर्जुन एक बहुउपयोगी औषधीय वृक्ष है. इसके आभायुक्त  सफ़ेद या पीले रंग के फूल सुगन्धित होते हैं.अर्जुन की छाल में कैल्शियम कार्बोनेट लगभग 34% व सोडियम, मैग्नीशियम व एल्युमिनियम पाए जाते हैं। कैल्शियम-सोडियम की प्रचुरता के कारण ही यह ह्रदय की मांसपेशियों को पोषण व बल प्रदान करता है.जिससे ह्रदय के स्पंदन उचित हो जाते हैं और ह्रदय की धड़कन सामान्य रहती है. ह्रदय सशक्त व उत्तेजित रहता है।
             ह्रदय को दुरुस्त रखने के अलावा अर्जुन की छाल का उचित तरह से उपयोग, क्षय, रक्तविकार, मोटापा, प्रमेह, घाव, कफ, तथा पित्त आदि से सम्बंधित व्याधियों में उपयोग किया जाता है।
            सोचता हूँ, स्थान अनुपलब्धता के चलते यदि वृक्षारोपण हेतु उपयोगी वृक्षों का ही चयन किया जाय तो वृक्षारोपण का महत्व और भी बढ़ सकता है।
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                       जिज्ञासु साथियों हेतु उपयोग विषयक जानकारी .. (कॅापी पेस्ट)
                                         
                          प्रकृति : अर्जुन की छाल गर्म प्रकृति ( तासीर ) की होती है।

1 : हृदय के रोग
              अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई रहित एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है,   हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा। 

         अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने-आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।
       अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में औटाकर रोगी को पिलाने से दिल में आई शिथिलता और सूजन में लाभ मिलता है।हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें जब यह गुलाबी हो जाये तो अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 ग्राम डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।
                   गेहूं और इसकी छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से तेज हृदय रोग मिटता है।अर्जुन की छाल का रस 50 ग्राम, यदि गीली छाल न मिले तो 50 पानी ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकावें। जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 ग्राम और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें। घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें।
                      यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है। हार्ट अटैक हो चुकने पर 40 मिलीलीटर अर्जुन की छाल का दूध के साथ बना काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। इससे दिल की तेज धड़कन, हृदय में पीड़ा, घबराहट होना आदि रोग दूर होते हैं।
                       हृदय रोगों में अर्जुन की छाल का कपड़े से छाने चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। हृदय की अधिक धड़कनें और नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुरन्त शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है।
                      अर्जुन की छाल का चूर्ण 10 ग्राम को 500 ग्राम दूध में उबालकर खोया बना लें। उस खोये के वजन के बराबर मिसरी का चूरा मिलाकर, प्रतिदिन 10 ग्राम खोया खाकर दूध पीने से हृदय की तेज धड़कन सामान्य होती है। अर्जुन की छाल 500 ग्राम को कूट-पीसकर उसमें 125 ग्राम छोटी इलायची 20 ग्राम को मिलाकर सुबह-शाम 3-3 ग्राम पानी के साथ सेवन करने से तेज दिल की धड़कन और घबराहट नष्ट होती है।अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को किसी कपड़े द्वारा छानकर रखें। प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय का घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की निर्बलता दूर होती है। अर्जुन की छाल 10 ग्राम, गुड़ 10 ग्राम तथा मुलेठी 10 ग्राम। तीनों को एक साथ लगभग 250 ग्राम दूध में उबालकर सेवन करें।
2 : हड्डी टूटने पर

अर्जुन के पेड़ के पाउडर की फंकी लेकर दूध पीने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। चूर्ण को पानी के साथ पीसकर लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है। प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटी हड्डी के स्थान पर भी इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बांधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।
3 : जलने पर
आग से जलने पर उत्पन्न घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव जल्द ही भर जाता है।
4 : खूनी प्रदर
इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण, 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करें, इसे दिन में 3 बार लें।
5 : शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिए
अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से अधिक पसीना आने के कारण उत्पन्न शारीरिक दुर्गंध दूर होगी।
6 : मुंह के छाले
अर्जुन की छाल के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
7 : पेशाब में धातु का आन
अर्जुन की छाल को कूटकर 2 कप पानी के साथ उबालें, जब आधा कप पानी शेष बचे, तो उसे छानकर रोगी को पिलायें। इसके 2-3 बार के प्रयोग के बाद पेशाब खुलकर होने लगेगा तथा पेशाब के साथ धातु का आना बंद हो जाता है। अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए।
8 : ताकत को बढ़ाने के लिए
अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण-खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। दूध तथा गुड़, चीनी आदि के साथ जो अर्जुन की छाल का पाउडर नियमित रूप से लेता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरंजीवी होता है।
9 : श्वेतप्रदर
महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर तथा पेशाब की जलन को रोकना भी इसके विशेष गुणों में है।
10 : पुरानी खांसी
छाती में जलन, पुरानी खांसी आदि को रोकने में यह सक्षम है।
11 : हार्ट फेल
हार्ट फेल और हृदयशूल में अर्जुन की 3 से 6 ग्राम छाल दूध में उबालकर लें।
12 : तेज धड़कन, दर्द, घबराहट
अर्जुन की पिसी छाल 2 चम्मच, 1 गिलास दूध, 2 गिलास पानी मिलाकर इतना उबालें कि केवल दूध ही बचे, पानी सारा जल जाये। इसमें दो चम्मच चीनी मिलाकर छानकर नित्य एक बार हृदय रोगी को पिलायें। हृदय सम्बंधी रोगों में लाभ होगा। शरीर ताकतवर होगा।
13 : पेट दर्द
आधा चम्मच अर्जुन की छाल, जरा-सी भुनी-पिसी हींग और स्वादानुसार नमक मिलाकर सुबह-शाम गर्म पानी के साथ फंकी लेने से पेट के दर्द, गुर्दे का दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।
14 : पीलिया
आधा चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण जरा-सा घी में मिलाकर रोजाना सुबह और शाम लेना चाहिए।
15 : मुखपाक (मुंह के छाले)
अर्जुन की जड़ के चूर्ण में मीठा तेल मिलाकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुखपाक मिटता है।
16 : कान का दर्द
अर्जुन के पत्तों का 3-4 बूंद रस कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।
17 : मुंह की झांइयां
इसकी छाल पीसकर, शहद मिलाकर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।
18 : टी.बी. की खांसी
अर्जुन की छाल के चूर्ण में वासा के पत्तों के रस को 7 उबाल देकर दो-तीन ग्राम की मात्रा में शहद, मिश्री या गाय के घी के साथ चटायें। इससे टी.बी. की खांसी जिसमें कफ में खून आता हो ठीक हो जाता है।
19 : खूनी दस्त
अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण 5 ग्राम, गाय के 250 ग्राम दूध में डालकर इसी में लगभग आधा पाव पानी डालकर हल्की आंच पर पकायें। जब दूध मात्र शेष रह जाये तब उतारकर उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर नित्य सुबह पीने से हृदय सम्बंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह विशेषत: वातदोष के कारण हुए हृदय रोग में लाभकारी है।
20 : रक्तप्रदर (खूनी प्रदर)
अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण एक कप दूध में उबालकर पकायें, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री के साथ दिन में 3 बार स्त्री को सेवन करायें।
21 : प्रमेह (वीर्य विकार) में
अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल को समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण करें। इस चूर्ण की 20 ग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे, तो इसे शहद के साथ मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट हो जाता है।
22 : शुक्रमेह
शुक्रमेह के रोगी को अर्जुन की छाल या श्वेत चंदन का काढ़ा नियमित सुबह-शाम पिलाने से लाभ पहुंचता है।
23 : बादी के रोग
अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर उसका बारीक चूर्ण तैयार करें। चूर्ण को दो-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित सुबह-शाम फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते हैं।
24 : खूनीपित्त (रक्तपित्त)
अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह उसको मसल छानकर या उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।रक्तपित्त या खून की उल्टी में अर्जुन के तने की छाल के बारीक चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा को दूध में पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त की वाहिनियों में रक्त जमने लगता है तथा बाहर नहीं निकलता है।
25 : कुष्ठ (कोढ)
रक्तदोष एवं कुष्ठ रोग में इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है।अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर गुनगुने पानी में मिलाकर नहाने से बहुत लाभ होता है।
26 : बुखार
अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर क्वाथ (काढ़ा) पिलाने से बुखार छूटता है।
27 : व्रण (घाव) के लिए
अर्जुन छाल को यवकूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।अर्जुन के जड़ के चूर्ण की फंकी एक चम्मच दूध के साथ देने से चोट या रगड़ लगने से जो नील पड़ जाता है, वह ठीक हो जाता है।घाव में अर्जुन छाल 5 ग्राम से 10 ग्राम सुबह शाम दूध में पकाकर खायें। छाल को पीसकर घाव पर बांधने से भी अच्छा लाभ होता है। सूखा पाउडर 1 से 3 ग्राम खाना चाहिए।
28 : जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार)
अर्जुन की छाल के एक चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिटता है।
29 : अर्जुन छाल क्षीरपाक विधि
अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सूखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 250 ग्राम दूध में 250 ग्राम (बराबर वजन) पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें उपरोक्त तीन ग्राम (एक चाय का चम्मच हल्का भरा) अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाये तब उतार लें। पीने योग्य होने पर छानकर रोगी द्वारा पीने से सम्पूर्ण हृदय रोग नष्ट होते है और हार्ट अटैक से बचाव होता है।
30 : दमा या श्वास रोग
अर्जुन की छाल कूटकर चूर्ण बना लेते हैं। रात को दूध और चावल की खीर बना लेते हैं। सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन का चूर्ण मिलाकर खिलाना चाहिए। इससे श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।
31 : उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना)
अर्जुन वृक्ष का चूर्ण, यष्टिमूल तथा लकड़ी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीमीटर दूध के साथ दिन में 2 बार देने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) में लाभ होता है।
32 : अतिक्षुधा (अधिक भूख लगना) रोग
रोगशालपर्णी और अर्जुन की जड़ को बराबर मात्रा में मिश्रण बनाकर पीने से भस्मक रोग मिट जाता है।
33 : मल बंद (उदावर्त, कब्ज)
मूत्रवेग को रोकने से पैदा हुए उदावर्त्त को मिटाने के लिए इसकी छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा नियमित रूप से सुबह-शाम पिलाना चाहिए।
34 : हड्डी के टूटने पर
हड्डी के टूटने पर अर्जुन की छाल पीसकर लेप करने एवं 5 ग्राम से 10 ग्राम खीर पाक विधि से दूध में पकाकर सुबह शाम खाने से लाभ होता है। मात्रा : सूखा पाउडर 1 ग्राम से 3 ग्राम खाना है।
35 : मधुमेह का रोग
अर्जुन के पेड़ की छाल, कदम्ब की छाल और जामुन की छाल तथा अजवाइन बराबर मात्रा में लेकर जौकूट (मोटा-मोटा पीसना) करें। इसमें से 24 ग्राम जौकूट लेकर, आधा लीटर पानी के साथ आग पर रखकर काढ़ा बना लें। थोड़ा शेष रह जाने पर इसे उतारे और ठंडा होने पर छानकर पीयें। सुबह-शाम 3-4 सप्ताह इसके लगातार प्रयोग से मधुमेह में लाभ होगा।
36 : मोटापा दूर करें
अर्जुन का चूर्ण 2 ग्राम को अग्निमथ (अरनी) के बने काढ़े के साथ मिलाकर पीने से मोटापे में लाभ होता हैं।
37 : पेट के कीड़ों के लिए
अर्जुन के फूल, बायविंडग, जलपीपल, मोम, चंदन, राल, खस, कूठ और भिलावा को बराबर मात्रा में लेकर धूनी देने से मच्छर और कीड़े मर जाते हैं।अर्जुन के फल, भिलावा, लाख, श्रीकस, श्वेत, अपराजिता, बायविंडग और गूगल आदि को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें, फिर इसे आग में डालकर धूनी देने से घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल निकलकर भाग जाते हैं।
38 : पैत्तिक हृदय की बीमारी में
3 से 6 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण व 3 से 6 ग्राम गुड़, 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।
39 : गुल्यवायु हिस्टीरिया
अर्जुन वृक्ष की छाल, चौलाई की जड़, काले तिल और तीसी का लुआब 25-25 ग्राम की मात्रा में लें तथा 30 ग्राम की मात्रा में मिश्री लें। इसके बाद इन सबको घोंट लें और अर्जुन के पत्ते के रस के साथ कूट करके छाया में सुखायें। इसका बारीक चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रख लें। अर्जुन के पत्ते के रस के साथ इस औषधि को 4-6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को खिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।
40 : शरीर में सूजन
इसकी छाल का बारीक चूर्ण लगभग 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में क्षीर पाक विधि से (दूध में पकाकर) खिलाने से हृदय मजबूत होता है और इससे पैदा होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।लगभग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में अर्जुन की छाल का सूखा हुआ चूर्ण खिलाने से भी सूजन खत्म हो जाती है।गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर पर सूजन आ जाने पर भी अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।

उत्तराखंड का जायका : “ मुर्या “



उत्तराखंड का जायका : “ मुर्या “


                    महानगरों में निश्चित रूप से भूमि अभाव खलता है लेकिन कुछ औषधीय पौधों को गमलों या अनुपयोगी हो चुके पात्रों में उगाया जा सकता है, कलाम साहब ने राष्ट्रपति भवन में, फूलों से अलग "हर्बल गार्डन" की व्यवस्था कर इस सम्बन्ध में अनूठी पहल की थी.तस्वीर में और पृष्ठभूमि में कई औषधीय पौधे दिखाई दे रहे हैं.उनका जिक्र आगे पोस्ट्स में अवश्य करूँगा.. फिलहाल तस्वीर में तुलसी के सदृश दिख रहे “ मुर्या ‘ की उपयोगिता पर चर्चा की जाय..
                    धर्मपत्नी जी दशहरे में मायके गयी थी लिहाजा अपने साथ उत्तराखंड की कई ऐसी खाने की चीजें जो यहाँ दिल्ली में नहीं मिल पाती लेकर आई.
                    यहाँ मैं लायी गयी उत्तराखंड की ककड़ी का ही जिक्र कर रहा हूँ, उसका आकार मैदानी ककड़ी से काफी बड़ा होता है और काटने के बाद दूर तक पहुँचने वाली खुशबू सबको आकर्षित करती है.
                    अब विषय पर आता हूँ ..  “ मुर्या “ 
(Organum vulgare --labiatae) ( lamiaceae -mint family ) ,इसे स्वीट मार्जारोम ,मरुबक ,मरवा,मरुआ या मोरू भी कहा जाता है,  इसी फैमिली में तुलसी और पुदीना भी आते हैं.            इस फैमिली के पादप एक तीक्ष्ण गंध लिए होते हैं इनमे एक उड़नशील तेल होता है. यदि मोच आयी जगह पर मोरू को रगड़ा जाये तो आश्चर्य जनक परिणाम आते हैं ! इसकी जड़ के रस को ५ से १० ग्राम सुबह शाम सेवन से तपेदिक में भी लाभ होता है. इसकी पत्तियों की २० से ४० ग्राम की फंकी क्र सेवन से कब्ज दूर होता है साथ ही इसके तेल की सिकाई से अतिसार में लाभ मिलता है.
इसके पंचांग का क्वाथ बना के पीने से गठिया में भी लाभ होता है और इसकी टहनियों को पानी में उबाल कर बफरा देने से सूजन में लाभ होता है ,

         मुर्या की
पत्ती व हरी मिर्च मिश्रित नमक के साथ खाने का आनंद कुछ विशिष्ट और लाजवाब होता है !!. खाने के बाद आने वाली डकार में "मुर्या" की महक का आनंद ही अलग है , अगर मुर्या को “ Breath Freshener “ भी कह दिया जाय तो शायद अतिशयोक्ति न होगी!! "मुर्या" भोजन का स्वाद व खुशबु बढ़ाने के साथ-साथ औषधीय पौधा भी है.   रोज 2-3 पत्तियां खाने से उच्च रक्तचाप में राहत मिलती है.          

          पत्तियों को सुखाकर उसी जायके व खुशबु के साथ लम्बे समय तक उपयोग किया जा सकता है , संभवत: बुजुर्गों ने नमक के रक्तचाप पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को निष्प्रभावी करने के उद्देश्य से नमक में "मुर्या" को मिलाना शुरू किया होगा !! विशेषकर ककड़ी के रायते में सूखी पत्तियों का पाउडर बुरक देने से रायत्ते का स्वाद और खुशबु दुगना हो जाती है .मुर्या की चटनी पेट के लिए बहुत लाभदायक है .       
       हमारे बुजुर्ग इन वनस्पतियों के लाभ जानते थे और इसीलिए इन पादपों को भोजन के साथ किसी न किसी रूप में प्रयोग भी करते थे ..