Wednesday 12 August 2015

उत्तराखंड का जायका : “ मुर्या “



उत्तराखंड का जायका : “ मुर्या “


                    महानगरों में निश्चित रूप से भूमि अभाव खलता है लेकिन कुछ औषधीय पौधों को गमलों या अनुपयोगी हो चुके पात्रों में उगाया जा सकता है, कलाम साहब ने राष्ट्रपति भवन में, फूलों से अलग "हर्बल गार्डन" की व्यवस्था कर इस सम्बन्ध में अनूठी पहल की थी.तस्वीर में और पृष्ठभूमि में कई औषधीय पौधे दिखाई दे रहे हैं.उनका जिक्र आगे पोस्ट्स में अवश्य करूँगा.. फिलहाल तस्वीर में तुलसी के सदृश दिख रहे “ मुर्या ‘ की उपयोगिता पर चर्चा की जाय..
                    धर्मपत्नी जी दशहरे में मायके गयी थी लिहाजा अपने साथ उत्तराखंड की कई ऐसी खाने की चीजें जो यहाँ दिल्ली में नहीं मिल पाती लेकर आई.
                    यहाँ मैं लायी गयी उत्तराखंड की ककड़ी का ही जिक्र कर रहा हूँ, उसका आकार मैदानी ककड़ी से काफी बड़ा होता है और काटने के बाद दूर तक पहुँचने वाली खुशबू सबको आकर्षित करती है.
                    अब विषय पर आता हूँ ..  “ मुर्या “ 
(Organum vulgare --labiatae) ( lamiaceae -mint family ) ,इसे स्वीट मार्जारोम ,मरुबक ,मरवा,मरुआ या मोरू भी कहा जाता है,  इसी फैमिली में तुलसी और पुदीना भी आते हैं.            इस फैमिली के पादप एक तीक्ष्ण गंध लिए होते हैं इनमे एक उड़नशील तेल होता है. यदि मोच आयी जगह पर मोरू को रगड़ा जाये तो आश्चर्य जनक परिणाम आते हैं ! इसकी जड़ के रस को ५ से १० ग्राम सुबह शाम सेवन से तपेदिक में भी लाभ होता है. इसकी पत्तियों की २० से ४० ग्राम की फंकी क्र सेवन से कब्ज दूर होता है साथ ही इसके तेल की सिकाई से अतिसार में लाभ मिलता है.
इसके पंचांग का क्वाथ बना के पीने से गठिया में भी लाभ होता है और इसकी टहनियों को पानी में उबाल कर बफरा देने से सूजन में लाभ होता है ,

         मुर्या की
पत्ती व हरी मिर्च मिश्रित नमक के साथ खाने का आनंद कुछ विशिष्ट और लाजवाब होता है !!. खाने के बाद आने वाली डकार में "मुर्या" की महक का आनंद ही अलग है , अगर मुर्या को “ Breath Freshener “ भी कह दिया जाय तो शायद अतिशयोक्ति न होगी!! "मुर्या" भोजन का स्वाद व खुशबु बढ़ाने के साथ-साथ औषधीय पौधा भी है.   रोज 2-3 पत्तियां खाने से उच्च रक्तचाप में राहत मिलती है.          

          पत्तियों को सुखाकर उसी जायके व खुशबु के साथ लम्बे समय तक उपयोग किया जा सकता है , संभवत: बुजुर्गों ने नमक के रक्तचाप पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को निष्प्रभावी करने के उद्देश्य से नमक में "मुर्या" को मिलाना शुरू किया होगा !! विशेषकर ककड़ी के रायते में सूखी पत्तियों का पाउडर बुरक देने से रायत्ते का स्वाद और खुशबु दुगना हो जाती है .मुर्या की चटनी पेट के लिए बहुत लाभदायक है .       
       हमारे बुजुर्ग इन वनस्पतियों के लाभ जानते थे और इसीलिए इन पादपों को भोजन के साथ किसी न किसी रूप में प्रयोग भी करते थे ..

 

2 comments:

  1. बहुत खूब मित्रवर जी ! मुर्या , जैसे की पहले भी फेसबुक में आपसे इस सम्बन्ध में चर्चा हुई है आज फिर आपके ब्लाक के माध्यम से खुद की जानकारी में वृद्धि करने जा रहा हूँ ,संध्याकालीन प्रणाम स्वीकारियेगा .

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    1. धन्यवाद मित्र वर स्वागतम्

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