Thursday, 27 August 2015

वृक्षारोपण सार्थकता और रक्षाबंधन

वृक्षारोपण सार्थकताऔर रक्षाबंधन

बिन मांगे ही जो लुटाते हैं,ध्यान उनका भी धरें,
वो जीते हैं स्वाभिमान से, किसी से मांगते नहीं !!.
                                                                     .. विजय जयाड़ा
        आज सुबह विद्यालय में प्रार्थना प्रारंभ हुई तो टहलते हुए हाल ही में लगाये गए पांच अर्जुन के पेड़ों का हाल-चाल जानने उनके पास पहुँच गया. आज भी चार पेड़ सुरक्षित थे !! प्रसन्नता हुई !! लेकिन जैसे ही पांचवे पेड़ की तरफ गया, मन ख़राब हो गया !! बेचारा मरणासन्न पड़ा मानों दर्द से कराह रहा था !! किसी उत्पाती ने उसके मूल तने को ही मोड़कर तोड़ने की कोशिश की थी !!
         तुरंत अपनी कक्षा की उत्साही बच्चियों, 
ललिता व गुनगुन से प्राथमिक चिकित्सा हेतु, पानी, दो अलग-अलग चौडाई की टेप मंगवाई, खाद मिली मिटटी का स्नेह लेप लगाकर एक लकड़ी के टुकड़े के सहारे तने को मूल अवस्था तक सीधा किया और अच्छी तरह से टेप लगा दिया.
         हमने कोई बहुत बड़ा काम नही किया !! लेकिन पेड़ पर रक्षा सूत्र बांधकर बहुत सुकून मिला !! साथ ही इन बच्चियों में प्रत्यक्ष रूप से वृक्ष मित्र होने के संस्कार भी संप्रेषित कर सका..
         रक्षाबंधन के दिन पेड़-पौधों पर भी रक्षा सूत्र बांधकर, उनकी दीर्घायु होने की कामना करके की स्वस्थ परंपरा,पेड़-पौधों की सुरक्षा व स्वच्छ पर्यावरण के सम्बन्ध में एक सार्थक पहल अवश्य हो सकती है..         सोचता हूँ वृक्षारोपण को एक पखवाड़े व कुछ तस्वीरें क्लिक करने तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए. यदि रोपित वृक्षों के वयस्क हो जाने तक उनकी सुरक्षा और देखभाल सुनिश्चित की जाय, तो ही वृक्षारोपण सार्थक सिद्ध हो सकता है. इससे एक ओर जहाँ वन क्षेत्र बढेगा वहीँ बागवानी विभाग के माध्यम से वृक्षों की पौध तैयार करने पर किये जाने वाले सार्वजनिक धन की बर्बादी भी रुक सकती है..

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