Monday 27 August 2018

अमर बेल ...



अमर बेल ...

अनंत विस्तार ले चुकी 
धीरे-धीरे समाज को 
खुद में समा चुकी 
अमर बेल के करीब से 
आज फिर____
गुजरना हुआ 
उन्मादित है ! आह्लादित है !
प्रमादित है, अमर बेल ! ! 
हरियल पेड़ की 
दरकार भी नहीं अब उसे !
जाति धर्म भाषा की 
जहरीली लताएँ___
पोषित कर रही हैं अब उसे !
अदृश्य है अमूर्त है 
अशांति आर्तनाद ! 
मासूमों की सिसकियाँ 
अबलाओं का रुदन !!
उसका मूर्त रूप है 
समाज के ऊपर 
विस्तार ले रही है अमर बेल 
उन्मादित है !____ 
आह्लादित है अमर बेल 
समाज को जकड़ती 
फिरकों में बांटतीं 
विस्तार ले रही हैं___ 
अनेकों अमर बेल !
..... विजय जयाड़ा

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