भीमल (Grewia optiva) ; एक बहुउपयोगी वृक्ष
कुछ साथियों को पानी में रखी गई इन टहनियों के बारे में अवश्य जानकारी होगी। यदि नही है तो ये " भीमल " की टहनियाँ हैं. कुछ दिन पानी में इसलिए भीगने के लिए रख दी हैं जिससे आसानी से इसका रेशा ( स्योल) निकल जाएगा . इस रेशे से रस्सियाँ व जुड़ा बनाया जाता है . भीमल की बारीक टहनियों से टोकरियां भी बनाई जाती हैं और पत्तियाँ, जानवरों के लिए सर्दियों में लाभदायक भोजन है। भीमल के बीज खाद्य प्रसंस्करण में भी प्रयोग किए जाते हैं।हरी टहनियों की छाल को निकालकर उसे कूटकर पानी में भिगाकर उससे सिर धोया जाता है जो शैम्पू जैसा घना झाग देता है। आजकल शिकाकाई मिश्रण के साथ कम्पनियाँ इसका उपयोग कर रही हैं। इससे कपडे भी धोए जाते हैं...
सूखी लकड़ी जो बच जाती है जिसे " कैडे " कहा जाता है, ये त्वरित आग सुलगाने के काम में प्रयोग किये जाते हैं। पुराने समय में रात के अंधेरों में राह चलने के काम में भी लाये जाते थे।
साथियों, है न प्राकृतिक रूप से फायदेमंद " भीमल " का पेड़ ?
ओहो !! एक बात तो भूल ही गया ! कभी, गुरू जी की पसंदीदा "ज्ञानबोधनी" भी होती थी भीमल की " सुटकी " .. चटाख - चटाख !!
हम जहां बहु राष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों में प्राकृतिक सामग्री के समावेश को पढकर उन्हें खरीदने को लालायित रहते हैं वहीँ उत्तराखंड में बहुत सी उपयोगी सामग्री प्रकृति में निशुल्क व आसानी से उपलब्ध हैं और इनका उपयोग करने में हम स्वयं को पिछड़ा हुआ समझते हैं !!
भीमल वृक्ष लगाकर जहाँ एक ओर दुग्ध उत्पादन बढ़ाया जा सकता है वही इससे प्राप्त रेशे से रेशा उद्योग आधारित कुटीर उद्योग लगा कर व सरकार द्वारा उत्पाद विपणन सुनिश्चित कर स्थानीय अर्थ व्यवस्था को मजबूत कर प्लायन का दंश झेल रहे उत्तराखण्ड में आशा की किरण लायी जा सकती है।